* मुरली के मनमनाभव शब्द का यथार्थ अर्थ *
मनमनाभव होना ही सबसे बड़ा मनोरंजन है क्योंकि सर्व सम्बन्धो का रस वा अनुभूतियां करना ही मनमनाभव है। सिर्फ बाप ,टीचर ,सतगुरु के रूप में नही बल्कि सर्व सम्बन्धो के स्नेह का अनुभव कर सकते हो लेकिन फर्क क्यों पड़ जाता है? एक है दिमाग से नॉलेज के आधार पर सम्बन्ध को याद करना और दूसरा है दिल से उस सम्बन्ध के स्नेह में , लव में लीन हो जाना....आधा तो करते हो बाकी आधा रह जाता है इसलिए थोड़ा समय तो ठीक रहते हो , थोड़े समय के बाद सिर्फ दिमाग से ही सम्बन्ध को याद करते हो तो दिमाग मे दूसरी बात आने से दिल बदल जाता है ,फिर मेहनत करनी पड़ती है....ऐसे में कहते है हमने याद तो किया ,परमात्मा हमारा कम्पेनियन है लेकिन कम्पेनियन ने तोड़ तो निभाई नही , अनुभव तो कुछ हुआ नही... क्यों ? क्योंकि.ये दिमाग से याद किया , दिल मे स्नेह को समाया नही। याद दिमाग से होती है तो निकलती भी जल्दी है लेकिन दिल मे समाई हुई याद को चाहे सारी दुनिया भी दिल से निकालना चाहे तो भी नही निकाल सकते। हर सम्बन्ध को स्नेह से , दिल से अनुभव करो.. जिस समय , जिस सम्बन्ध की आवश्यकता है उसी प्रमाण दिल से याद करो जैसे आवश्यकता है फ्रेंड की और याद करो बाप के रूप में तो मज़ा नही आएगा । स्नेह से जिस सम्बन्ध की अनुभूति चाहिए, उसे दिल से अनुभव करो तो मेहनत भी नही लगेगी , बोर भी नही होंगे, सदा मनोरंजन होता रहेगा। अब मेहनत से निकलो। अपने स्वमान तो देखो, परमात्मा का कितना प्यार है आप सबसे प्यार है तब तो पत्र लिखते है अर्थात मुरली में उत्तर भी देते है और याद प्यार भी देते है,अगर कोई क्वेश्चन उठता है , कोई समस्या सामने आती है ,आप सोचते हो और सूक्ष्म वतन के कम्प्यूटर में आ जाता है तो मुरली से आपको रेस्पॉन्स मिलता है। बेहद के पत्र में सबके क्वेश्चन का उत्तर होता है सिर्फ दूसरे दिन की मुरली को उस विधि से देखो कि जो मैंने सोचा उसका उत्तर क्या है ?
* मनमनाभव का अर्थ - Soul talk Ep.15 *
परम आत्मा की महिमा ही है मुश्किल को सहज करने वाले, ऐसा बाप आपके साथ है साथी के रूप में तो कोई मुश्किल हो सकती है? फिर क्यों मुश्किल करते हो? बाप स्वयं आफर करते है कि जिस समय जैसा सम्बन्ध चाहिए वैसे रूप में साथी बनाओँ फिर भी किनारा कर देते हो और कहते हो कि बोरिंग लाइफ हो गई है अकेलापन फील होता है , श्रेष्ठ जीवन साधारण जीवन अनुभव होता है , कुछ चेंज चाहिए। वैसे तो एक तरफ बाप को खुश करने के लिए कहते है कि हम तो कम्बाइंड है और फिर दूसरी तरफ कहते है अकेले हो गए हैं । कम्बाइंड कभी अकेला और बोर हो सकता है क्या? ज्ञान सागर को दिल से कम्पेनियन नही बनाया है क्या ? कितना भी गहरा काला बादल सूर्य की रोशनी को छिपाने वाला हो लेकिन आपके पास ऑटोमैटिक डायरेक्ट परमात्म लाइट का कनेक्शन है सिर्फ चेक करो कि लाइन कलीयर है या कोई लीकेज है। डायरेक्ट लाइन में इतनी लाइट है कि स्वयं तो लाइट में होंगे ही लेकिन औरों के लिए भी लाइट हाउस हो जाएंगे। बाप से मिले अपने स्वमान और प्राप्तियों की स्मृति के स्विच ऑन करो तो अंधकार भाग जाएगा। जब सहारे को और अनुभव को किनारे कर देते हो तो मेहनत करनी पड़ती है । मार्ग मेहनत का नही है लेकिन हाई वे की बजाय गलियों में चले जाते हो व मंज़िल के निशाने से आगे बढ़ जाते हो तो लौटने की मेहनत करनी पड़ती है। परमात्मा स्नेह और सहयोग से मंज़िल की ओर लेकर जा रहे है फिर भी साथी को छोड़ देते हो। बाप के लव में लीन हो जाओ , लवलीन होकर हर कार्य करो तो मेहनत समाप्त हो जाये। ( अव्यक्त बापदादा : 18.2.94 ) 1. मैं आत्मा हूँ।
2. मैं आत्मा सर्व शक्तियों से सम्पन्न हूँ।
3. मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की संतान हूँ।
4. मैं आत्मा भगवान के नयनो का नूर हूँ।
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