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प्यारे बापदादा की 108 श्रीमत (Shiv Baba's 108 Shrimat)

Updated: Feb 3, 2022

परमपिता परमात्मा शिव बाबा व प्यारे बापदादा की 108 श्रीमत (108 points of Shrimat in Hindi, derived from Shiv Baba's Gyan Murli - BapDada's aspirations for all Brahman children)

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Shiv Baba through Brahma


शिव बाबा कहते है:


1. पवित्र बनो, योगी बनो ।


2. देह सहित देह के सर्व सम्बन्धों को भूल एक बाप को ही याद करना है।


3. ब्राह्मण कुल की मर्यादाओं का पालन करना है।


4. कभी भी संगदोष में नहीं आना है।


5. सदा श्रेष्ठ संग, ईश्वरीय संग में रहना है।


6. सब को सुख ही देना है।


7. किसी को भी मन्सा, वाचा, कर्मणा से दुख नहीं देना है।


8. सदा शान्तचित, हर्षितचित, गंभीर और एकान्तप्रिय बनकर रहना है।


9. सबको बाप का परिचय देना है, सुख, शान्ति का रास्ता बताना है।


10. किसी भी देहधारी से दिल नहीं लगाना है।


11. सभी को आत्मिक दृष्टि से देखने का अभ्यास करना है।

12. अपनी चलन देवताओं जैसी बड़ी रॉयल रखनी है।

13. कभी भी मुरली मिस नहीं करनी है।

14. कभी भी रूठना नहीं है।

15. कभी भी मूड ऑफ नहीं करना है।

16. सदा रूहानी खुशी में रहना है ।

17. सबको सुखदायी वरदानी बोल से उमंग-उत्साह में लाकर आगें बढाना है ।

18. सदा ईश्वरीय याद में रह रूहानी नशे में रहना है ।

19. विश्वकल्याण की सेवा में तत्पर रहना है ।

20. अमृतवेले उठ विचार सागर मंथन का विश्व सेवा के नए नए प्लान बनाने हैं ।

21. अमृतवेले उठ बाप को बडे, प्यार से, दिल से याद करना है ।

22. किसी भी आत्मा पर क्रोध नहीं करना हे ।

23. बहुत-बहुत मीठा बन सबको मीठा बनाने की सेवा करनी है ।

24. कभी भी विकारों में नहीं जाना है ।

25. आत्म अभिमानी बन बाप को याद करना है ।

26. कोई भी विकर्म नहीं करना है ।

27. दैवी गुण धारण करने हैं ।

28. आसुरी अवगुणों को निकाल देना है ।

29. स्वदर्शनचक्र फिराते रहना है ।

30. आपस में ज्ञान की ही लेन देन करनी है ।

31. आपस में कभी भी लूनपानी नहीं होना है ।

32. माया से कभी भी हार नहीं खानी है ।

33. इस मायावी संसार के आकर्षण में नहीं आना है ।

34. लोभवृत्ति नहीं रखनी है ।

35. चोरी नहीं करनी है ।

36. झूठ नहीं बोलना है ।

37. बाप से कुछ भी छिपाना नहीं है ।

38. बाप के भण्डारे से जो भी मिले उसमें ही सदा सन्तुष्ट रहना है ।

39. सचखण्ड की स्थापना के कार्य में बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है ।

40. संगठन को मजबूत बनाने के लिए सदा एकमत होकर रहना है ।

41. सदा ज्ञान का सिमरन करते रहना है ।

42. व्यर्थ की बातों में समय बर्बाद नहीं करना है ।

43. सभी की विशेषताओं को ही देखना है ।

44. किसी से भी पैसे की लेन-देन का अब हिसाब-किताब नहीं रखना है ।

45. एक दो के स्नेही सहयोगी बनकर रहना है ।

46. न्यारा प्यारा कमल पुष्प समान बनकर रहना है ।

47. बीमारी में भी सदा खुश रहना है ।

48. किसी की भी निन्दा अथवा परचिन्तन नहीं करना है ।

49. सबको शान्तिधाम, सुखधाम की राह दिखानी है ।

50. निन्दा-स्तुति , मान-अपमान में एकरस स्थिति रखनी है ।

51. कभी भी झरमुहीं- झंगमुहीं नहीं होना है ।

52. ट्रस्टी होकर रहना है ।

53. सिवाए एक बाप के किसी से भी मोह नहीं रखना है ।

54. योगयुक्त अवस्था में रहकर ही हर कर्म करना है ।

55. ज्ञान की टिकलू-टिकलू, भूं- भूं और शंखध्वनि करते रहना है ।

56. भोजन की एक-एक गीटटी बाप की याद में रहकर बाप के साथ खानी है ।

57. किसी की मी विशेषताओं के ऊपर प्रभावित नहीं होना है ।

58. सदैव सात्विक भोजन ही स्वीकार करना है ।

59. भोजन पर एक दो को बाप और वर्से की ही याद दिलानी है ।

60. कोई मी उल्टी चलन नहीं चलनी है ।

61. सर्विस में कमी मी बहाना नहीं देना है ।

62. बड़ों को रिगार्ड और छोटो को स्नेह देना है ।

63. संगम पर अपना तन-मन-धन सबकुछ सफल करना है ।

64. चलते-फिरते, उठते-बैठते भी बाप की याद में रहकर दूसरों को भी बाप की याद दिलानी है ।

65. सदा श्रेष्ठ से श्रेष्ठ स्वमान में रहना है ।

66. ट्राफिक कंट्रोल का उल्लंघन नहीं करना है ।

67. रात्रि सोने से पूर्व भी बाप को अपना सच्चा पोतामेल देना है ।

68. ज्यादा से ज्यादा अशरीरी बनने की प्रेक्टिस करनी है ।

69. सर्ब सम्बन्ध एक बाप से ही रखने हैं ।

70. सर्विस में अपनी हड्डियां स्वाहा करनी हैं ।

71. कभी भी ईश्वरीय कुल का नाम बदनाम नहीं करना है ।

72. खाने-पीने की चीजों में भी अनासक्त वृति रखनी है ।

73. अपने स्वीटहोम, शान्तिधाम को याद करना है ।

74. ज्यादा हंसी मजाक में नहीं आना है ।

75. जरुरत से ज्यादा चीजें संग्रह नहीं करनी हैं ।

76. विनाश के पहले पहले अपना सबकुछ सफल कर लेना है ।

77. अपनी विशेषताओं पर कभी भी अहंकार नहीं करना है ।

78. देह-अभिभान वश कोई भी विकर्म नहीं करना है ।

79. किसी भी बात में संशयबुद्धि नहीं बनना है ।

80. याद की फांसी पर लटके रहना है ।

81. ब्रह्मा बाप समान बनने का पुरूषार्थ करना है ।

82. पढ़ाई में रेग्युलर, पंक्चुअल बनना है ।

83. न बुरा देखना, न बुरा बोलना, न करना, न सोचना और न ही बुरा सुनना है ।

84. सबको मुक्ति, जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है ।

85. सेवा में विघ्न रूप नहीं बनना है ।

86. कोई भी नया कर्मबन्धन नहीं बनाना है ।

87. सम्बन्ध सम्पर्क में आते सदा रूहानियत में रहना है ।

88. अशरीरी बनने का अभ्यास करते ही रहना है ।

89. पतितों को पावन बनाने की सेवा करनी है ।

90. वायुमण्डल में शान्ति, शक्ति, खुशी, उमंग-उत्साह के वायब्रेशन फैलाने की सेवा करनी है ।

91. मम्मा बाबा को फालो करना है ।

92. सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना है ।

93. इस पुरानी दुनिया से बेहद के वैरागी बनना है ।

94. साक्षी अवस्था में रह अपनी स्थिति को मजबूत बनाना है ।

95. सच्ची दिल से बाप पर पूरा-पूरा बलिहार जाना है ।

96. दैवी मैनर्स धारण करने और कराने हैं ।


97. किसी के भी नाम, रूप में नहीं फंसना है ।


98. कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है ।


99. और सब संग तोड एक बाप के संग में रहना है ।


100. योगबल से अपने पुराने सब हिसाब-किताब चुक्तु करने हैं ।


101. अपना स्वभाव सरल बनाकर सबसे मिलनसार होकर रहना है।


102. योग-ज्वाला से अपने पुराने अवगुणी स्वभाव-संस्कार को जड़ से निकाल भस्म कर देना है।


103. सर्व आत्माओं को सुख देकर दुआओं का पात्र बन, अविनाशी खाता जमा करना है।


104. अपना बोल, चाल बहुत-बहुत मीठा रखना है सबको उमंग-उत्साह में लाने वाले बोल बोलने हैं।


105. सदैव बाबा को अपना साथी बनाकर रखना है।


106. बाप समान बन सबको शीतलता के छीटें डालकर शीतल बनाना है।


107. पवित्रता के बल पर श्रीमत द्वारा विश्व को पावन बनाने की निरंतर सेवा करते रहना है।


108. बाबा को इतना प्यार से, दिल से याद करना है जो आंखों से प्रेम के आंसू आ जायें।


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