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Gyan Murli Question Answers (PART 7)


Gyan Murli related questions and answers - PART 7. इस PART (भाग) में 2 प्रश्न लिए गए है.

1. Shiv baba se help lene ki vidhi.

2. Prakrutijeet banne ki Vidhi

References:

General Articles - Hindi & English

प्रश्न १ (Question 1)

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Om shanti प्रश्न - किन परिस्थितियों में हमे बाबा को सब सौप कर निश्चिंत हो जाना चाहिए और किनमे उसकी help नहीं मिलती, अपने शक्ति का use करना होगा, या कहें वो प्रत्यक्ष रूप से हमारी परेशानियां हल नहीं करता?

Surrender to God

ओम् शांति। अभी संगम पर हम बच्चो को निश्चयबुद्धि बन सभी परिस्थितियां, चाहे सुख हो या दुख हो, सभी को एक परमात्मा बाप को सौप निश्चिन्त हो जाना चाहिए । बाबा के महावाक्य भी है कि अपने सभी बोझ एक बाप को दे और उसे ट्रस्टी बना स्वयं डबल लाइट बनो।

बाबा के डायरेक्शन अर्थात श्रीमत के विपरीत कोई भी कार्य करने पर बाबा की मदद नही मिलती। बाबा का कर्म की गहन गति का ज्ञान देना और उस प्रमाण श्रेष्ठ जीवन जीने की अनेको विधियां बता गुणमूर्त बनाना ही बाबा की मदद है। जब हम श्रीमत पर चलते है तो बाबा मदद करने को बन्धायमान है।

.....इसलिए ऐसा सोचना की बाबा प्रत्यक्ष रूप से हमारी मदद नही करना, तर्क संगत नही है। कमी हममें है जो श्रीमत पर नही चलते और फिर बाबा को blame करते है कि बाबा मदद नही करता। बाबा कहते भी है कि हिम्मत का एक कदम बच्चो का , तो मदद के हज़ार कदम बाप के उठे ही है। इसलिये किसी विकट परिस्थिति में निश्चयबुद्धि बन श्रीमत प्रमाण अपनी शक्तियों का यूज़ करके हिम्मत का एक कदम बढ़ाने से ही बाबा फिर यथार्थ मदद के लिए आगे आएगा। नही तो फिर भगतो की तरह चिल्लानेे अर्थात पुकारने में मेहनत ज्यादा और क्षणिक प्राप्ति का अनुभव होगा। विचार करे - लौकिक में भी जब बच्चे बड़े हो जाते है अर्थात कमाने लायक हो जाते है तो बाप की चाहना होती है कि वो कमा कर घर-परिवार और रिलेशन में पड़ने वाले किसी भी समारोह में अपनी आमदनी से बाप की मदद करे। और जब बच्चा बड़ा होने के बावजूद भी कमाने के लिए पुरुषार्थ ना कर बाप के कमाई पर ही टिक जाता है तो बाप को गुस्सा आता है और उसको अपना खुद का बच्चा भी बोझ महसूस होता है। यद्दपि परमात्मा बाप के लिए हम बच्चे कभी भी बोझ नही होते पर खुद विचार सागर मंथन करे कि जब बाप इतने वर्षों से हमे पढ़ा लिखा कर लायक बना रहा है तो हम बाप का शो कब करेंगे ? क्या अंत तक भी हम बाप से स्वयं की मदद का गुहार लगाते रहेंगे ?? जबकि हम सर्वशक्तिवान बाप के डायरेक्ट मुखवंशवाली बच्चे है।

बाप हमे सर्व आत्माओ का आधारमूर्त और उद्धारमूर्त का टाइटल दे सबको मुक्ति देने का ताजधारी बनाते है। बाप तो तब खुश होता है जब बच्चे बाप से भी ऊँच पोजीशन प्राप्त करे। ठीक इसी रीति सर्वशक्तिवान बाप भी तब खुश होगा जब हम मंगता नही बल्कि देवता अर्थात देने वाला बने। ....इसलिए अब हमे बाप से विघ्न आने पर या हर बात के लिए याचना और फरियाद ना कर, बाप की याद से स्वयं में इतनी शक्ति और सामर्थ्य भर लेना है, जो स्वयं तो माया पर विजय प्राप्त करे ही बल्कि अन्य आत्माओ की भी सभी चाहनाओ को पूर्ण कर मास्टर सर्वशक्तिवान के टाइटल को चरितार्थ करे। और यही सर्वोच्च धारणास्वरूप बच्चों की निशानी है, जो स्वयं भी बाप के सर्व खजानों , शक्तियों, गुणों से भरपूर होकर अन्यो को भी महादानी बन दान करते है। ओम् शांति

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प्रश्न 2 (Question 2)

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प्रकृतिजीत बनने की विधि क्या अपनाएं जो महा विनाश में प्रकृति सेवाधारी बन जाये....? bhaiji pls bataien.... ओम् शांति । सर्वप्रथम तो ये समझे कि प्रकृति किसे कहते है ? एक तो बाह्य जगत की पंच महाभूतों को प्रकृति कहते है। दूसरे, हमारा ये जड़ शरीर भी पंच महाभूतों से बनने के कारण आत्मा की दैहिक प्रकृति है। तीसरे स्वभाव संस्कार को भी आम बोलचाल में प्रकृति कहते है। प्रायः कभी ना कभी हर आत्मा का दूसरे आत्मा को ये कहना-सुनना आम है कि इसकी प्रकृति ही उग्र होने की है।

मीठे बाबा ने हमे प्रकृतिजीत और प्रकृतिपति का ना सिर्फ स्वमान ही दिया है बल्कि विस्तार से अनेको मुरलियो में इस प्रति समझाया भी है। बाह्य जगत की प्रकृति अर्थात पांच महाभूतों को अपनी कंबाइंड स्वरूप की स्मृति और सर्व शक्तियों की पावरफुल मनसा सकाश द्वारा पोषित करना है। ऐसा करने से अंत विनाश के समय यही प्रकृति के तत्व अज्ञानी आत्माओ समक्ष अनेको उत्पात मचाने हुए जब हमारे सन्मुख आएंगे तो शांत हो जाएंगे।

आन्तरिक प्रकृति को दासी बनाने के लिए ना सिर्फ साकारी शरीर की बाह्य कर्मेन्द्रियों को कर्मचारी की तरह अपने आर्डर प्रमाण चलाना है बल्कि सूक्ष्म कर्मेन्द्रियों को भी सहयोगी रूप से समझा बुझाकर अपने साथ चलाना है। समझा बुझाकर चलाना मतलब मन-बुध्दि को ना अमन करना है ना दमन करने है बल्कि सुमन कर के अपने साथ मिलाना है। मन को ना अमन करना है ना दमन करने है पर सुमन कैसे करना है इसको एक उदाहरण के रूप में समझाते है। मान लो कि हम बाज़ार में जाते हुए मिठाई की महक

जाते ही जिव्हा रूपी कर्मेन्द्रिय इसको ग्रहण करने के लिए लालायित हो जाती है पर आप ने अपने मन को ये कह कर अमन कर दिया कि आज नही फिर कभी खाएंगे। अगले दिन फिर जब यही स्थिति सन्मुख आयी तो आपने मन की इस इच्छा को जबर्दस्ती ये कहने हुए दमन किया कि बाबा ने मना किया हुआ है। लेकिन तीसरी या बार बार जब पुनः यही स्थिति आएगी तो कदाचित मेजोरिटी आत्माएं मिठाई को ये समझते हुए खा लेंगी कि हम तो गृहस्थ में है, इतना तो चलता ही है। और मिठाई में कौन का लहसुन-प्याज मिला है। परंतु मन जब पहली बार ही मिठाई के लिए लालायित हुआ था अगर उस समय ही मन को अमन और दमन करने के बजाए सुमन कर देते तो शायद मिठाई खाने की जिद सहयोगी कर्मेन्द्रिय मन नही करता। अब मन को सुमन कैसे करना है , इस बारे में समझते है। मन को चिंतन दे कि बाबा ने बाहर की मिठाई आदि सभी चीजे खाने को क्यों मना किया है। क्योंकि आने वाले समय मे बहुत सारी मौते food adultaration के कारण होने वाली फ़ूड poisioning के कारण काल कवलित होंगी। और अगर हमारी बाहर खाने की वृत्ति रहेगी तो हम भी ऐसे मरने वालो की लिस्ट में होंगे। तो ऐसे ऐसे चिंतन से मन को सुमन कर ले, फिर मन दुबारा आप को परेशान अर्थात श्रेष्ठ शान की सीट से अपसेट नही करेगा। ** शरीर रूपी प्रकृति को दासी बनाने अर्थात प्रकृतिजीत बनने के लिए अन्य विधियां :-- 1. एकान्तवासी बन एकाग्रता की शक्ति से परखने और निर्णय शक्ति स्वरूप बनना है। 2. ड्रामा के हर राज़ और सबके पार्ट को अच्छे से समझ, साक्षी हो हर आत्मा के पार्ट को देख, नथिंग न्यू की स्मृति से अचल, अडोल और एकरस रहना है। 3. सहनशीलता और समाने की शक्ति के धारणास्वरूप बनना है। 4. नित्य प्रति श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ स्वमानो का अभ्यास करें और उसके स्वरूपधारी बन कर रहे। 5. अकालतख्त पर विराजमान हो, मैं आत्मा मालिक हूँ, इस स्मृति से स्वराज्यधिकारी बन बाह्य और सूक्ष्म कर्मेन्द्रियों को आर्डर और सहयोगी प्रमाण चलाये। 6. अपने आधारमूर्त और उद्धारमूर्त के हीरो हेरोइन पार्टधारी को स्मृति में रहे। 7. आत्मा के नेचुरल गुणों की स्मृति स्वरूप बनने के लिए आदि-अनादि स्वरूप की स्मृति में रहे। 8. खाली समय में मन-बुद्धि को स्व-चिंतन, श्रेष्ठ चिंतन, ज्ञान चिंतन, परमात्म चिंतन आदि में बिजी कर दे। संक्षेप में :- *-------------* मन को शुद्ध और समर्थ संकल्पो द्वारा परिमार्जन करना है। बुद्धि को अलौकिक वा दिव्य बनाने के लिए यथार्थ निर्णय शक्ति और परिवर्तन शक्ति द्वारा चेकिंग और चेंजिंग साथ साथ करना है। और पुराने संस्कारों को आदि अनादि गुणों की स्मृति द्वारा परिवर्तन करना है। जब उपर्युक्त विधि द्वारा सूक्ष्म सहयोगी मन, बुद्धि, संस्कार पर विजय प्राप्त कर लेंगे तो कर्मचारी कर्मेन्द्रिय खुद ब खुद सही रास्ते पर आ जाएंगी। एक शब्द में :- *-------------* प्रकृतिजीत बनने के लिए सम्पूर्ण नष्टोमोहा बन स्मृति स्वरूप बनना है। जब ये न्यारा सो प्यारा अवस्था होगी तो प्रकृति भी अपने मास्टर मालिक की सेवा में सदा नतमस्तक रहेगी। ओम् शांति

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