दादी (वरिष्ठ बहन) रत्न मोहिनी (अर्थात जो रत्नों को आकर्षित करें अथवा सबसे सुंदर रतन) प्रजापिता ब्रह्माकुमारी अध्यात्मिक ईश्वरीय विश्वविद्यालय की वर्तमान मुख्य प्रशासनिक प्रमुख हैं, दादी गुलज़ार के ११ मार्च, २०२१ के दिन अव्यक्त होने के बाद उनको कमिटी ने मुख्य प्रशाशिका नियुक्त किया।
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दादी की जीवन कहानी
दादी रत्न मोहिनी का जन्म का नाम लक्ष्मी था। उनका जन्म हैदराबाद सिंध में, (जो अब पाकिस्तान में है) के एक प्रसिद्ध व धार्मिक परिवार में 25 मार्च, 1925 को हुआ। जैसे दादी वर्णन करती हैं, कि वे बहुत शर्मीली थीं और बात करते हुए बहुत संकोच करती थी, परन्तु एक बहुत अच्छी छात्रा (स्टूडेंट) थीं। वह अपना अधिकांश समय शिक्षा को समर्पित करती थी। जब वह ज्ञान में आई (ब्रह्माकुमारी के संपर्क में आई), तब उनकी उम्र केवल 13 वर्ष थी। बचपन से ही उनका झुकाव अध्यात्मिकता व पूजा-पाठ की तरफ था, पर उन्हें कोई अंदाजा नहीं था कि जिंदगी उन्हें परमात्मा के इतने करीब ले आएगी।
दादी का प्रथम अनुभव
दादी ने ओम् मण्डली (ब्रह्माकुमारी का पुर्व नाम) के साथ अपने अनुभव को नीचे वर्णित किया है:
दादी कहती है:
"मैं लगभग १३ साल की थी। मेरी स्कूल की छुट्टियों के दौरान मेरी मां मुझे भगवत गीता के सत्संग में ले गई जो हमारे शहर में आयोजित किया गया था। मैं जाकर पहली पंक्ति में बैठ गई। बाबा (ब्रह्मा बाबा) आए और वह भी बैठ गए। ओम् ध्वनि के साथ सत्संग का आरंभ हुआ। जैसे ही मैंने ब्रह्मा बाबा के मुख से ओम् ध्वनि सुनी, मैंने गहरी आंतरिक शांति का अनुभव किया और मैं ट्रांस में चली गई। जहां तक मुझे याद है, मैं अपनी चेतना को आसपास के वातावरण से अलग कर चुकी थी, और अनुभव किया कि इस व्यक्ति के माध्यम से कोई ऊँच शक्ति बोल रही हैं। लगभग एक घंटे में सत्संग समाप्त हो गया, परन्तु मैं बाबा को निहारती रही। उन्होंने मुझे देखा और मुझे उठाया। मेरी मां मुझे हिला कर होश में लाई और मैं बाबा के पास गई और फिर मैंने उनसे सत्संग के बारे में कई प्रश्न पुछे (क्योंकि मुझे कुछ याद नहीं था)। उन्होंने मुझे समझाया... मैंने उनके साथ पिता के संबंध को अनुभव किया। तब से धीरे धीरे मेरी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ हुई..."
ओम् मण्डली के साथ पुर्व यात्रा
२००२ के अपने साक्षात्कार में दादी रत्न ने हमें अपनी जीवन यात्रा का संक्षेप में विवरण दिया। लक्ष्मी ने पहले ही महसूस कर लिया था कि यह कोई उच्च शक्ति (भगवान) है जो दादा के माध्यम से यह ज्ञान सुना रहे हैे। शुरू में उनके परिवार ने उन्हें सहयोग नहीं दिया, पर बाद में उन्होंने अनुमति दे दी और लक्ष्मी (दादी रत्न मोहिनी, जिनका १९३७-३८ में फिर से नाम रखा गया) ने ओम् मण्डली सत्संग में दी जाने वाली शिक्षाओं के आधार पर अपना जीवन अध्यात्मिक ज्ञान को समर्पित करने का निर्णय किया। तब से, उनकी कहानी ओम् मण्डली संगठन (लगभग २८४ आत्माओं के साथ) के साथ जुड़ी हुई है,जो इस ईश्वरीय संस्था का आधार बनें।
"मेरा परिवार राधे-कृष्ण का अनन्य भक्त था और मैं भी सुबह स्कूल जाने से पहले पूजा किया करती थी। एक बच्चे के रूप में मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि भगवान क्या है, ना ही मैंने कभी यह सोचा था कि स्वयं भगवान मेरा शिक्षक होंगे।" - दादी रत्न मोहिनी, अपने २००२ के साक्षात्कार में कहती हैं।
दादी के उत्तरदायित्व
वर्तमान समय दादी यज्ञ (ब्रह्माकुमारीज़) के मुख्य प्रशासनिक-प्रमुख के रूप में सेवारत हैं। और उन्होंने निम्नलिखित सेवाएं भी दी है:
➤राजयोग एजुकेशन और रिसर्च फाउंडेशन के युवा प्रभाग के अध्यक्ष।
➤ब्रह्माकुमारी मुख्यालय , माउन्ट आबू में कार्मिक विभाग के निदेशिका।
➤राजस्थान ज़ोन में ब्रह्माकुमारीज़ सेवा केंद्रो के ज़ोनल हैड।
➤भारत में शिक्षक प्रशिक्षण (टीचरस ट्रेनिंग) के निदेशिका।
दादी रतन के गुण
➤ एक गहन विचारक
➤ किसी आध्यात्मिक विषय की कुशल वक्ता
➤ दयालु
➤ बहुत विनम्र
➤ सेवा के लिए सदा तैयार
➤ आध्यात्मिक रूप से परिपक्व
➤ हमेशा मुस्कुराते रहना
➤ सभी को खुश करना
➤ दादी पवित्रता, शांति और उच्च उद्देश्य के जीवन का एक उदाहरण है
➤ रत्न मोहिनी दादी को बहुत से लोगों द्वारा एक आदर्श ब्रह्माकुमारी के रूप में देखा जाता है।
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