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दादी जानकी की जीवन कहानी (जीवनी)

Updated: Jan 6, 2022

दादी जानकी (जिन्हे जनक के नाम से भी जाना जाता हैं) प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की तीसरी मुख्य प्रशासक रही (सितम्बर २००७ से मार्च २०२१ तक)। दादी जानकी जी को विश्व में एक बड़ी हस्ती के रूप में देखा व माना जाता है। उनको ब्राह्मण परिवार में सभी सम्मान की दृष्टि से देखते है। दादी की जीवन कहानी सचमुच अनोखी व प्रेरणादायी रही। इस जीवनी में आप जानेंगे जानकी दादी का इतिहास, वो ज्ञान में कब और कैसे आयी, और 1970s में उनके द्वारा कैसे भारत के बाहर सेवाएं शरू हुई, व कैसे 2007 से 2020 तक दादी ने मुख्य प्रसाशिका के रूप में यज्ञ संभाला।


दादी जानकी

दादी का परिचय

दादी का जन्म 1916 में उत्तरी भारतीय प्रांत के सिंध सहर में हुआ, जो अब पाकिस्तान में आता है। अपने शुरुआती दिनों से अन्य लोगों के कल्याण का भाव उनके जीवन को प्रेरित करता रहा। अन्य लोगों के कल्याण की भावना उनके जीवन को बल देती थी। जानकी दादी के इस सहज गुण ने उन्हें सबसे अलग व परमात्म-प्यारा बनाया। बापदादा दादी जानकी को स्नेह से जनक पुकारा करते थे। अपने पिताजी के घोडेगाडी पर यात्रा कर लोगो को शाकाहारी भोजन का लाभ बताना, और बीमार व बुजुर्गो की सेवा करना, आदि दादी जानकी के बचपन की यादों में शामिल हैं। उन्होंने ३ वर्ष तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त की और फिर उन्होंने सत्य और परमात्म खोज़ के लिए कई धार्मिक स्थानों की यात्रा शरू की। दादी जानकी यज्ञ के आरंभ में (1937 में) परमात्मा व परमात्म यज्ञ (कर्तव्य) पर सम्पूर्ण निश्चय रख २१ वर्ष की आयु में यज्ञ में सम्मिलित हुए। दादीजी अन्य लोगों की तुलना में 1 साल देरी से आई, इसलिए उन्होंने तुरंत अपना जीवन इसमें समर्पित कर दिया और मुरली को दिन में 5 से 6 बार पढ़ना शुरू किया।


ॐ मण्डली के साथ यात्रा

दादी १८० लोगों के संगठन मे शामिल हुई जो कराची (पाकिस्तान) में एक नया आध्यात्मिक अर्थपूर्ण जीवन जीने आये थे। इस संगठन ने अपना समय गहन आध्यात्मिक पुरुषार्थ में समर्पित किया। मैडिटेशन में आत्मिक चेतना के अन्वेषण ने वास्तविक व अविनाशी पहचान की गहन अनुभूति का भान कराया जो सभी आत्मिक प्राप्ति का स्रोत है। स्व परिवर्तन के लिए परमात्म याद के अभ्यास की विधि द्वारा कुशलता प्राप्त की गई। यह सब १९३९ और १९५० के बीच हुआ। दादी को वर्ष १९५० मे शहरों के आसपास सेवा के निमित्त भेजा गया । दादी जी हमेशा बापदादा के श्रीमत के अनुसार चलती रही। अधिक जानने लिए विजिट करे: Yagya History पेज।


दादी और ईश्वरीय सेवा


स्वयं मातेश्वरी (मम्मा सरस्वती) सेवाओं के दौरान दादी जानकी की मार्गदर्शक बनी। बाबा ने दादी को दिशानिर्देश और मुरली देने के लिए कई पत्र भी लिखे। मम्मा १९६५ में भौतिक शरीर का त्याग कर अव्यक्त हुए जिसके बाद बाबा १९६९ में अव्यक्त हुए। फिर दादी जानकी सहित वरिष्ठ दादियों के पास अब पहले की तुलना में कई अधिक जिम्मेदारियाँ थीं। यज्ञ का कार्य करते हुए, दादी ने बढ़ती सेवाओं में गति बनाए रखी। १९६९ के बाद नए सेवा-केंद्र अधिक तेज़ी से खुलने लगे।


अंतर्राष्टीर्य सेवाएँ

अव्यक्त बापदादा ने १९७४ में दादी जानकी को लंदन की अंतर्राष्ट्रीय सेवा के लिए निर्देश दिया। दादी जानकी को पहले जाने में संकोच हुआ क्योंकि वह अंग्रेजी व वहाँ की सभ्यता नहीं जानती थी। परन्तु परमात्मा पर सम्पूर्ण निश्चय रख और परमात्मा की इच्छा को समझ, दादी सेवा के लिए रवाना हो गई। लंदन मे यूरोप का पहला सेवाकेंद्र खुला। राजयोग मैडिटेशन के साथ इसका आरम्भ हुआ व उसके बाद वहाँ मुरली पढ़ी गई। दादी ज़्यादा नहीं बोलेंगी ,पर मौन की शक्ति का अभ्यास करायेगी। उन्होंने उन कक्षाओं का भी संचालन किया जहां एक बहन अंग्रेजी में अनुवाद करती है। दादी ने सफलतापूर्वक आध्यात्मिकता, दिव्यता व मूल्यों की जड़े ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी के मन मे स्थापित की। वह विश्वसेवा के निमित बनी। वे जड़ें अब पूरे विश्व में १४० से भी अधिक देशों में व्यापक रूप से फैली हुई हैं।


ब्रह्माकुमारीज़ के प्रमुख के रूप मे

दादी प्रकाशमणि के अगस्त २००७ में जाने के बाद दादी जानकी ने समूचे यज्ञ की जिम्मेदारी ली। फिर दादी जानकी मधुबन मे स्थानन्तरित हुई और तब से उन्होंने मधुबन से सभी सेवाकेन्द्रों का मार्गदर्शन किया। बी.के. जयंती को सभी यूरोपीय केंद्रों के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया। इस समय तक, कई बी.के. आध्यात्मिक रूप से परिपक्व हो चुके थे कि वे दूसरों का मार्गदर्शन कर सकें और निर्णय ले सकें। १०३ वर्ष की आयु मे (जीवन के अंतिम दिनों में) दादी ने शरीर से सेवा न कर पाने पर भी अपने शुभकामनाओं व वाइब्रेशन द्वारा सेवा की। दादी का सम्पूर्ण जीवन (पूर्व जीवन एवं आध्यात्मिक जीवन) बलिदान व सेवा से भरा हुआ है, जो सभी को प्रेरित करता है। वर्ष १९७८ में, टेक्सस विश्वविद्यालय, यू. एस. ए., के मेडिकल एंड साइंस रिसर्च इंस्टिट्यूट ने दादी जानकी को दुनिया की सबसे स्थिर बुद्धि वाला मनुष्य घोषित किया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि "जटिल बुद्धि परिक्षण करते हुए भी उनकी बुद्धि पूर्ण रूप से स्थिर थी।


दादी जानकी खाना बनाते, भोजन करते, लेक्चर देते, हिसाब-किताब करते, बातचीत करते, सोते हुए, हर समय उनकी इ.इ.जी. में लगातार डेल्टा लहरें ही आती रहीं !" १९९७ में लंदन में 'जानकी फाउंडेशन फॉर ग्लोबल हेल्थ केयर' के नाम से एक चैरिटेबल ट्रस्ट खोला गया। २००४ में, उन्हें दुनिया के लिए मानवतावादी सेवाओं के लिए जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वारा अल इस्तिकलाल (स्वतंत्रता का पदक) के पहले आदेश के ग्रैंड कॉर्डन से सम्मानित किया गया। २०१५ में, तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी ने दादी को 'स्वच्छ भारत अभियान' का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया। दादी ने हमेशा याद दिलाया "मैं कौन ,मेरा कौन ?" । उपराम रहने वाली दादी जानकी ने २७ मार्च , २०२० में भौतिक शरीर का त्याग कर अव्यक्त बापदादा की गोद ली।


“जनक बेफिक्र बादशाह ,चिंतामुक्त योगी और अपने पिता के संग मे खेलती और रहती है और माता के समान पालना देती हैं“

- अव्यक्त बापदादा

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