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28 May 2018 BK murli today in Hindi - Aaj ki Murli


Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban -28-05-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन"

मीठे बच्चे - बाप की मदद या पूरा वर्सा लेने के लिए सगे बच्चे बनो, सगे अर्थात् पूरा सन्यास कर पवित्रता की प्रतिज्ञा करने वाले"

प्रश्नः- बाप फुल रहमदिल है - कैसे? कौन-सा रहम बच्चों पर सदा ही करते हैं?

उत्तर:- कोई बच्चा कितना भी विघ्न डालता, माया के वश हो उल्टा कर्म कर लेता, लेकिन फिर भी अगर कोई भूल महसूस करता है तो बाप उसे शरण ले कहते हैं - अच्छा, फिर से ट्रायल करो। अवगुणों को निकाल गुणवान बनो। बाप फुल रहमदिल है, क्योंकि जानते हैं बच्चे और कहाँ जायेंगे। सदा सुखी रहें - यही बाप की आश रहती है।

गीत:- तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है....

ओम् शान्ति।मीठे-मीठे बच्चे, तुम्हें गोप-गोपियाँ भी कहा जाता है। सतयुग में गोप-गोपियाँ नहीं होते हैं। वहाँ तो राजधानी चलती है। गोप-गोपियाँ संगमयुग पर हैं जबकि गोपी वल्लभ भी आते हैं। वल्लभ बाप को कहा जाता है। बच्चे याद करते हैं कि बाबा फिर से आओ। सभी सेन्टर्स के बच्चे होंगे। सबको पता है कि बाबा इस समय मुरली बजाता होगा। वह मुरली टेप में भरती होगी, लिखते भी होंगे। लिथो होगी फिर हमारे पास आयेगी। हम धारणा करेंगे फिर हम धारणा करायेंगे। यह सब समझते होंगे कि मधुबन में तो गोप-गोपियाँ गोपी वल्लभ से सम्मुख सुनते होंगे। वो ही मुरली फिर हम 4-5 दिन के बाद सुनेंगे। ऐसे ख्यालात चलते होंगे ना। कहते हैं - बाबा, आप आओ तो हम सदैव मुस्कराने लग जावें। जैसे देवतायें सदैव हर्षित रहते हैं। वहाँ यथा राजा रानी तथा प्रजा सब हर्षित रहते हैं। दु:ख का नाम-निशान नहीं रहता। यहाँ तो है ही प्रजा का राज्य। तो बच्चे जानते हैं बाबा आकर हमको पढ़ाते हैं। यहाँ गरीब ही अच्छी रीति पढ़ते हैं। जैसे वे गरीब भी कोई एम.एल.ए., कोई एम.पी. बन जाते हैं ना। यहाँ गरीब ही पढ़ सकते हैं। वारिस भी गरीब ही बनते हैं। साहूकारों को लफड़ा बहुत रहता है। एक तो धन का नशा, दूसरा फिर फुर्सत नहीं मिलती। बलि भी नहीं चढ़ सकते। यहाँ बलि चढ़ना पड़ता है तन-मन-धन सहित। साहूकारों का हृदय विदीरण होता है। फुरना बहुत रहता है इसलिए गरीब झट बलि चढ़ते हैं। इसमें भी पहले नम्बर में कन्यायें जाती हैं। मम्मा भी कन्या है ना। बाप की बनी और कहेंगे - बस, मेरा तो शिवबाबा दूसरा न कोई। इसको बलि चढ़ना कहा जाता है। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए जैसे कि वहाँ नहीं हैं। बुद्धि में शान्तिधाम, सुखधाम ही बसता है। अब हम जाते हैं स्वीट होम, फिर स्वीट राजाई में। गृहस्थ व्यवहार में रहते रचना की भी पालना करनी है, परन्तु श्रीमत से। श्रीमत तब मिले जब बलि चढ़े। सर्वशक्तिमान के साथ योग लगाने से ही शक्ति मिलती है। बाप का नहीं बनते हैं तो शक्ति नहीं मिलेगी। सगे और लगे होते हैं। उन सन्यासियों में भी सगे और लगे होते हैं। कोई तो घरबार छोड़ जाकर कफनी पहनते हैं। वह ठहरे सगे। कोई फिर फालोअर्स होते हैं। वह रहते हैं गृहस्थ में। उनको कहते हैं सौतेले। सगे नहीं कहेंगे। उन्हें फिर वर्सा मिल न सके क्योंकि अपवित्र रहते हैं। यहाँ भी कोई तो सगे हैं जो पवित्रता की राखी बाँधते हैं। बाकी जो पवित्र नहीं रहते हैं उनको सगे कह न सकें। यह है राजयोग द्वारा सन्यास। वह है हठयोग द्वारा सन्यास। बाबा ने समझाया है - कैसे अपने को सन्यासियों के फालोअर्स कहलाते हैं। परन्तु रहते हैं घर गृहस्थ में। तो उनको वास्तव में फालोअर्स वा सन्यासी कह न सकें। सन्यास करने का पुरुषार्थ करने चाहते हैं परन्तु बन्धन है। जिन्होंने कल्प पहले सन्यास किया है वही छोड़ते हैं। वह हो जाते हैं सगे और वह लगे। यहाँ जो भी बाप के बनते हैं वही सगे ठहरे। मदद और वर्सा भी सगे को ही मिलेगा। लगे को मदद मिल न सके।बाबा ने समझाया है - यह है ज्ञान इन्द्र सभा। यहाँ सब ज्ञान पुखराज परी... हैं। नौ रत्नों की भी बहुत महिमा है। नौ रत्न की अंगूठी भी पहनते हैं। ब्राह्मण लोग कहते हैं यह पहनों तो तुम्हारी दशा बदलेगी। पत्थरों की भी महिमा कर दी है। वे ही तो तुम बच्चे हो। जितने जो सर्विसएबुल बच्चे हैं वे विजय माला में आते हैं। ऊंच ते ऊंच है हीरा बनाने वाला बाबा। उनको बीच में रखते हैं। मनुष्य तो इन बातों को जानते ही नहीं। नौ रत्न कौन हैं? पत्थर से भेंट क्यों करते हैं? जैसे नदियों से भी भेंट करते हैं, तुम हो ज्ञान नदियाँ। वह है पानी की। तो कहते हैं - बाबा आओ तो हम सदैव हर्षित रहेंगे। आपकी मुरली सुनकर औरों को सुनायेंगे। फिर हाँ, प्रिन्स-प्रिन्सेज बन रत्न जड़ित मुरली भी बजाते हैं। मुरली बजाने का शौक रहता है। कृष्ण को भी मुरली थी जरूर। जबकि वह प्रिन्स था, रास करता था। बाकी ज्ञान मुरली सुनाना या बजाना तो ज्ञान सागर का ही काम है। वह ज्ञान मुरली बाप आकर चलाते हैं। ज्ञान की बात यहाँ ही होती है। वहाँ ज्ञान की बात नहीं होती है। अब मुरली बजाने वाली तुम बच्चियाँ हो। सतयुग में त्रिकालदर्शीपने का ज्ञान नहीं होता। वहाँ यह नॉलेज प्राय:लोप हो जाती है। परम्परा नहीं चल सकती। पीछे तो होती है प्रालब्ध। ज्ञान एक ही बार मिलता है। अभी तुम 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध पा रहे हो। प्रालब्ध मिलेगी फिर तो बाबा भी परमधाम में जाकर बैठ जाते हैं। तुमको ज्ञान-योगबल से विश्व का मालिक बनाकर हम वाणी से परे हो बैठ जाते हैं। फिर वहाँ मेरे को कोई नहीं जानते। मुझ रचयिता और मेरी रचना को कोई जान नहीं सकते। न बाप को जानते, न सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। वहाँ यह ज्ञान नहीं रहता है। राधे-कृष्ण को वहाँ यह पता हो कि फिर 14 कला बनना है तो राज्य, ताज की खुशी ही गुम हो जाये। यह ज्ञान वहाँ रहता ही नहीं। बाप हर बात क्लीयर समझाते हैं। तुम भी सन्यासी हो, वे भी सन्यासी हैं। वो है हठयोग का सन्यास। सन्यासी हद का घर बार छोड़ जाते हैं। वहाँ है शंकराचार्य और यह है शिवाचार्य। शिवबाबा ज्ञान का सागर है ना। उनको आचार्य कहा जाता है। कृष्ण आचार्य नहीं। भगवान शिवाचार्य बैठ तुम बच्चों को समझाते हैं। राजयोग सिखलाते हैं। वह हठयोगी हैं। वह राजयोग सिखला न सके। यह बेहद का बाप ही सतयुग का राज्य प्राप्त कराने राजयोग सिखलाते हैं। तुम अब बाप के पास आये हो। वे जन्म बाई जन्म सन्यास लेते हैं। तुम 21 जन्म फिर सन्यास नहीं लेते हो। तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया है, हम इसको ठोकर मारते हैं।शिवबाबा ने दो प्रकार की यात्रा समझाई है - एक रूहानी यात्रा, दूसरी जिस्मानी। सुप्रीम बाप कहते हैं मैं तुमको यात्रा पर ले जाता हूँ। फिर तुम मृत्युलोक में नहीं आयेंगे। बाप है सुप्रीम पण्डा। उनके बच्चे भी पण्डे ठहरे। तुम हो रूहानी पण्डे, रूहानी यात्रा कराने वाले। यह धारण करने की बातें हैं। बच्चे अच्छी रीति धारणा कर समझाते हैं। कोई फिर ऐसे भी हैं जिनका योग पूरा नहीं रहता है। भल ज्ञान की धारणा अच्छी रहती है। योग नहीं ठहरता है। ज्ञान में माया इन्टरफियर नहीं करती है। योग में माया इन्टरफियर करती है। जैसे रेडियो में स्पीच करते हैं तो लड़ाई जब लगती है तो एक दो का आवाज सुनने नहीं देते हैं। खिट-खिट करते हैं तो योग में माया भी इन्टरफियर करती है। भारत में योग का नाम मशहूर है। प्राचीन योग किसने सिखाया? उन्होंने कृष्ण भगवानुवाच कह दिया है। कृष्ण तो है सतयुग में फिर उनका नाम, रूप, देश, काल बदलते-बदलते यह है अन्तिम जन्म। फिर उसमें बाप प्रवेश कर उनको यह बना रहे हैं। तुम जानते हो ब्राह्मण सो देवता बने, फिर क्षत्रिय सो वैश्य सो शूद्र बनें। बाप बैठ समझाते हैं मैं जो भी तुमको नॉलेज देता हूँ वह प्राय:लोप हो जाती है। इस द्वारा सुनाता हूँ। तो पहला नम्बर नदी ब्रह्मा। मेला लगता है ना - ब्रह्मपुत्रा और सागर पर। यह ब्रह्मपुत्रा है बड़ी नदी। जो धारणा करके कराते हैं। बरोबर भगवान रूप बदलकर आया है। जो निराकार रूप है वह बदल कर साकार में आते हैं। ब्राह्मणों का सबसे ऊंच कुल है। बाप ब्रह्मा मुख कमल द्वारा ब्राह्मणों को ज्ञान दे देवी-देवता धर्म और क्षत्रिय धर्म की स्थापना करते हैं। सतयुग-त्रेता में और कोई धर्म होता नहीं। अब स्थापना हो रही है। राधे-कृष्ण जो हैं वह लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। जिन्होंने भी पढ़ाई की है वह सतयुग में तो जरूर आयेंगे क्योंकि अविनाशी ज्ञान का विनाश नहीं होता है। प्रजा तो बहुत बनती है ना। कोई चले जाते हैं फिर चक्र लगाकर आ जाते हैं। जायेंगे कहाँ, शमा तो एक ही है। परवाने अनेक हैं। तो शमा पर आते रहेंगे। भागन्ती हो जाने वाले भी आयेंगे। सतगुरू की निन्दा कराई है फिर भी बाबा के पास आते हैं तो समझाया जाता है फिर से तुम यह ज्ञान उठा सकते हो। वह फील करते हैं बरोबर हमारी ही भूल है। तो उनको भी शरण लेना पड़ता है। फिर उनकी भी सेवा करेंगे। अन्त तक फुल रहम करना है। कितना भी विघ्न डालते हैं। फिर भी कहेंगे भल आओ, ट्रायल करो। मना नहीं है। बाप है ही फुल रहमदिल। तुम उनके बच्चे हो ना। कहते हैं माया ने भटकाया है। फिर भी उनकी सर्विस की जाती है। शरण में आते हैं तो फिर उठाना है। अवगुण को निकाल गुणवान बनाना चाहिए। बाप कभी दुश्मन नहीं बन सकता। बेहद का बाप कहेंगे कि बच्चे सुखी रहो। रहम आता है। कहाँ जायेंगे और तो कोई जगह है नहीं, जहाँ बाप से वर्सा ले सकें। बाप सब बातें समझाते हैं। बहुत नहीं धारणा कर सकते हैं तो फिर थोड़ा ही सही। अच्छा, मन्मनाभव। बाप की याद में रहो। आत्मा का स्वधर्म है शान्त। अटेन्शन प्लीज, सावधान - अपने बाप को याद करो। बाप को याद करने से वर्सा जरूर याद आयेगा। ऐसे हो नहीं सकता वर्सा याद न आये। बाप और वर्से को याद करने से तुम जीवनमुक्त बनते हो। कितनी सहज बात है। नाम ही रखा है - ‘सहज राजयोग।' योग कहने से ही मूँझते हैं। यह तो बाप को याद करना है ना।बाबा कहते हैं - अरे बच्चे, तुम बाप को भूल जाते हो! जिस बाप से हीरे जैसा जन्म मिला है, तुम उनको भूल जाते हो! लौकिक बाप को कब भूलते हो? बाबा को भूला तो वर्सा गुम। अपने को आत्मा निश्चय कर बाप को याद करना है। आत्म-अभिमानी बदले देह-अभिमानी बनने से धोखा खाते हैं। सन्यासियों का है निवृत्ति मार्ग। भारत पतित बनना शुरू हो जाता है तो यह आकर मरम्मत करते हैं। अपवित्र बनने से थामते (रोकते) हैं। उनमें प्योरिटी की ताकत रहती है। प्योरिटी है तो पीस प्रासपर्टी भी है। कन्या भी पवित्र है, तब तो उनको माथा टेकते हैं। देवतायें पवित्र हैं तो सब उनको माथा टेकते हैं। सतयुग में माथा टेकने की बात नहीं है क्योंकि सब पवित्र रहते हैं। अपने दर्पण में देखना चाहिए कि हमारे में कोई भूत तो नहीं है? लायक बने हैं लक्ष्मी-नारायण को वरने के? अपने को लायक बनाना है। तुम बच्चे जानते हो ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर और लक्ष्मी-नारायण आदि सबसे शिवबाबा ऊंच है। एक शिवबाबा ही हीरे जैसा है। बाकी इस समय सब तमोप्रधान कौड़ी जैसे हैं। महिमा सारी एक ही बाप की है। सारे सृष्टि को स्वर्ग बनाना - यह बाप का ही काम है। अच्छा।मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बाप पर पूरा बलि चढ़, बाप का सगा बच्चा बन बाप से पूरा वर्सा लेना है। पूरा पवित्र बनना है।

2) अपने को दर्पण में देख भूतों को निकाल गुणवान बनना है। बाप की मुरली सुन धारण कर औरों को करानी है।

वरदान:- निश्चयबुद्धि बन हलचल में भी अचल रहने वाले विजयी रत्न भव l

निश्चय और विजय - यह एक दो के पक्के साथी हैं। जहाँ निश्चय है वहाँ विजय जरूर है ही, क्योंकि निश्चय है कि बाप सर्वशक्तिमान है और मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ तो विजय कहाँ जायेगी? ऐसे निश्चयबुद्धि की कभी हार हो नहीं सकती। निश्चय का फाउण्डेशन पक्का है तो कोई तूफान हिला नहीं सकता। हलचल में भी अचल रहना - इसको कहा जाता है निश्चय-बुद्धि विजयी रत्न। लेकिन सिर्फ बाप में निश्चय नहीं, स्वयं में और ड्रामा में भी निश्चय हो।

स्लोगन:- उड़ता पंछी वह है जो देह के सब रिश्तों से मुक्त रह फरिश्ता बनने का पुरुषार्थ करता है।

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