15-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - कालों का काल आया है तुम सबको वापिस ले जाने, इसलिए याद से विकर्मों का बोझा ख़त्म करो, अपनी देह से मोह निकाल दो''
प्रश्नः-
भक्तों की कौन-सी पुकार जब बाप सुन लेते हैं तो भक्त खुश होने के बजाए दु:खी होने लगते हैं?
उत्तर:-
भक्तों पर जब दु:ख आता है तब कहते हैं - हे भगवान्, मुझे इस दु:ख की दुनिया से ले चलो, मेरी इस पतित दुनिया में दरकार नहीं लेकिन जब बाप पुकार सुनकर ले जाने के लिए आते हैं, तब रोते हैं। डॉक्टर को कहते हैं ऐसी दवाई दो जो हम तन्दरूस्त हो जाएं।
गीत:- दूरदेश का रहने वाला.....
ओम् शान्ति।
दूरदेश में बाप भी रहते हैं और तुम बच्चे भी रहते हो। अब यह बाप यहाँ क्यों आया है? बाप को क्यों याद करते हैं - हे भगवान् आओ, आकरके हमको वापिस ले जाओ? यह आत्मा कहती है अपने घर मुक्तिधाम ले जाओ। यह तो जैसे कालों के काल को पुकारते हैं। भक्ति मार्ग में समझ नहीं है हम किसको पुकारते हैं कि हमको इस पतित दुनिया के सम्बन्ध से छुड़ाकर साथ ले चलो, हमको यहाँ रहने की दरकार नहीं है और फिर कोई की आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो कितने दु:खी होते हैं, रोते पीटते हैं। एक तरफ तो बुलाते हैं - बाबा, आकरके हमको यहाँ से ले जाओ, इस शरीर से मुक्त करो। परन्तु जब मुक्त करते हैं तो रोते-चिल्लाते हैं। भक्ति मार्ग में पुकारते हैं परन्तु समझते नहीं हैं। सावित्री सत्यवान की कहानी है। वह तो एक की आत्मा को ले जा रहे थे, परन्तु सावित्री ले जाने नहीं दे रही थी। मनुष्य जब शरीर छोड़ते हैं तो शरीर में मोह होने के कारण आत्मा छोड़ना नहीं चाहती। डॉक्टर को कहते हैं ऐसी दवाई दो जो हम तन्दरुस्त हो जाएं। शरीर को हम छोड़ना नहीं चाहते। साथ में फिर कहते - भगवान् आओ, आकर हमको साथ ले जाओ। वन्डरफुल बात है ना। अभी तुम खुशी से चलते हो। मनुष्यों का तो दुनिया में मित्र-सम्बन्धियों आदि में मोह है। अब पूछते हैं - क्या तुमको मित्र-सम्बन्धियों आदि से छुड़ाऊं? ले तो जाऊं फिर तुम इन सम्बन्धियों की याद छोड़ो। अन्तकाल अगर बच्चों आदि को सिमरेंगे तो फिर ऐसा जन्म मिल जायेगा। बाबा कहते हैं तुम आत्माओं को इस शरीर से अलग कर मैं ले जाऊंगा फिर तुमको मित्र-सम्बन्धियों आदि की याद तो नहीं पड़ेगी? पिछाड़ी में एक बाप को ही याद करना है। पुनर्जन्म में तो फिर यहाँ आना नहीं है इसलिए देह सहित सबको भूलते जाओ। मुझ एक बाप को याद करो। जब तक तुम पवित्र नहीं बनेंगे तब तक तुमको ले नहीं जा सकता हूँ। अब मैं तुम आत्माओं को लेने आया हूँ परन्तु तुम्हारे ऊपर विकर्मों का बहुत बोझा है। यह आत्माओं से बात कर रहे हैं। बाप परमधाम से आये हैं, पराये देश में। अपना देश स्वर्ग जो स्थापन करते हैं, उसमें तो उनको आना नहीं है। यहाँ तुम दु:खी होकर बुलाते हो मुझे तो एक ही समय आकर सभी आत्माओं को वापिस ले जाना है। चाहे खुशी से चलो, चाहे नाराजगी से चलो। चलना है जरूर। बेहद का बाप कालों का काल आत्माओं को वापिस ले जाते हैं। गोया सभी मनुष्यों का विनाश करने आते हैं। पति-पत्नि होते हैं, पत्नि का पति मर जाए तो कितना रोती है। अभी कहते हैं हमको ले चलो, हमें कुछ नहीं चाहिए। परन्तु तुम पतितों को ले नहीं जा सकते इसलिए पावन बनाने आया हूँ। पावन तब बनेंगे जब अपने को अशरीरी समझेंगे। देह सहित देह के सब सम्बन्ध भूलेंगे। मुझ एक बाप को याद करेंगे, तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। युक्ति तो बहुत अच्छी बतलाता हूँ - कल्प-कल्प। तुम जानते हो यह सब शरीर ख़ाक हो जायेंगे। होलिका होती है तो उसमें धागा जलता नहीं है तो आत्मा भी जलती नहीं। बाकी इस भंभोर को आग लगनी है। सभी शरीर जलकर खाक हो जायेंगे और आत्मा शुद्ध हो जायेगी। आत्माओं को शुद्ध बनने के लिए निरन्तर देही-अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करना है। देह होते भी अपने को आत्मा समझ बाप के साथ योग लगाना है। जैसे सन्यासी लोग ब्रह्म अथवा तत्व से योग लगाते हैं, कहते हैं हम तत्व में लीन हो जायेंगे। तत्व से बुद्धियोग लग जाता है। ऐसे नहीं कि शरीर छोड़ देते हैं। समझते हैं तत्व से अथवा ब्रह्म से हम योग लगाते-लगाते ब्रह्म में लीन हो जायेंगे इसलिए हम उनको ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी कहते हैं। तत्व का ज्ञान है। तुमको ज्ञान है हम आत्मायें तत्व में रहती हैं। वह समझते हैं हम उस तत्व में लीन हो जायेंगे। अगर कहें हम जाकर वहाँ रहेंगे, तो भी ठीक है। आत्मा लीन तो होती नहीं है। बुदबुदे का मिसाल देते हैं लेकिन वह तो रांग है। ज्योति में लीन होने की बात ही नहीं। अविनाशी आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है जो कभी विनाश हो नहीं सकता। सन्यासी विकारों का सन्यास करते हैं, बाकी वापिस तो कोई जाते नहीं, यहाँ ही पुनर्जन्म लेते रहते हैं। वृद्धि होती जाती है। सबको सतो, रजो, तमो से पास होना ही है। ड्रामा में यह सब नूंध है। अभी तो देखो बीमारियां भी कितनी अनेक प्रकार की निकली हैं, पहले इतनी नहीं थी। ड्रामा में यह सारी नूंध है। तुम बच्चे जानते हो - बाबा आया ही है सब आत्माओं को वापिस ले जाने। कहते हैं - बाबा, हमको वापिस ले चलो। मुक्ति-जीवनमुक्ति तो सबको मिलनी है। परन्तु सब सतयुग में तो नहीं आ सकते। जो-जो जिस समय आते हैं, उसी समय उस धर्म में ही फिर आना पड़ेगा। तुम जानते हो फलाने-फलाने धर्म, फलाने टाइम पर आते हैं। बाबा भी कल्प पहले मुआफिक आया हुआ है, इतनी सब आत्माओं को वापिस ले जायेंगे। इस धरनी को कितनी खाद मिलनी है। नई दुनिया को भी खाद चाहिए ना। तो सब मनुष्य, जानवर आदि ख़त्म हो खाद बन जायेंगे फिर सतयुग में कितना अच्छा फल देते हैं, जो तुम बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है। तुम बच्चे जानते हो - बाबा कालों का काल है। सब कहते हैं - बाबा, हम खुशी से आपके साथ चलते हैं, हमको ले चलो। हमको यहाँ बहुत दु:ख है। यह है ही दु:ख देने वाली दुनिया। दु:खधाम में एक-दो को दु:ख देते रहते हैं। अपार दु:ख हैं, अब तुमको सुख में ले जाने आया हूँ। अब एक को याद करेंगे तो वर्सा पा सकेंगे। नहीं तो राजाई का वर्सा पूरा पा नहीं सकेंगे, फिर प्रजा में चले जायेंगे। बाप आकर राजाई का सुख देते हैं, और कोई भी धर्म स्थापक राजधानी स्थापन नहीं करते हैं। यह तो राजधानी स्थापन कर रहे हैं गुप्त वेष में। कोई को पता नहीं है कि सतयुग में लक्ष्मी-नारायण की राजधानी कैसे स्थापन हुई? शरीरधारी देवतायें कहाँ से आये? जबकि कलियुग में असुर थे। असुरों और देवताओं की लड़ाई तो चली नहीं है। न लड़ाई की बात है, न विकार की कटारी चलती है। फिर क्यों दिखाते हैं लड़ाई लगी? मूंझ गये हैं। सृष्टि तो वही है सिर्फ समय बदलता है। यह है बेहद का दिन, बेहद की रात। सतयुग-त्रेता को दिन कहा जाता है, वहाँ तो लड़ाई होती नहीं। परन्तु वह राजधानी उन्हों को कैसे मिली? कलियुग में तो राजधानी है नहीं। कहते हैं - बाबा, वन्डरफुल है आपकी स्थापना का कर्तव्य! इतने बच्चों को सुखी बनाते हो। बाकी हाँ, अपने-अपने पुरुषार्थ अनुसार ऊंच पद पा सकते हैं। तुम जानते हो 5 हजार वर्ष बाद परमपिता परमात्मा आते हैं। भल करके कोई प्रभू, कोई गॉड कहते हैं, पिता तो है ना। पिता कहना कितना अच्छा है। ईश्वर हमारा पिता है। सिर्फ प्रभू कहने से इतना मजा नहीं आयेगा। गॉड कहने से सर्वव्यापी समझ लेते हैं। फादर कहा जाए तो सर्वव्यापी कह न सकें। अब तुम आत्मायें सुन रही हो। समझती हो हमारा बाबा आया हुआ है, हमको योग से पवित्र बना रहे हैं। तो बाप, टीचर, सतगुरू को याद करना पड़े। यहाँ बच्चों को भासना आती है सम्मुख रहने से। हम तो आत्मा हैं, इस शरीर से पार्ट बजाते हैं। बाबा हमको लेने आये हैं। हम पुरुषार्थ करते हैं बाबा से योग लगायें। बाबा को याद करते-करते बाबा के पास चले जायेंगे। कोई सन्यासी जो बहुत उत्तम होते हैं तो वह भी ऐसे बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं। समझते हैं हम आत्मा जाकर ब्रह्म में लीन हो जायेंगी। सभी मोक्ष अथवा मुक्ति के लिए ही पुरुषार्थ करते हैं क्योंकि संसार में बहुत दु:ख है, इसलिए मोक्ष अथवा मुक्ति चाहते हैं। उन्हों को यह मालूम नहीं रहता कि दुनिया का चक्र फिरना है। हमारा पार्ट जरूर अविनाशी होना चाहिए। तुम्हारी बुद्धि जिन्न मिसल होनी चाहिए। जिन्न की कहानी कहते हैं ना, बोला - हमको काम दो, नहीं तो खा जायेंगे। फिर उसको काम दिया - सीढ़ी चढ़ो और उतरो। तुमको भी बाप कहते हैं मेरे साथ बुद्धियोग लगाओ, नहीं तो माया जिन्न खा जायेगी। माया है जिन्न, योग लगाने नहीं देती है। अच्छे-अच्छे पहलवान बहादुर को भी माया कच्चा खा जाती है। तुम जानते हो - बाबा सिखलाने आया हुआ है। कहते हैं - बच्चे, अब सम्मुख आया हूँ, मुझे अब याद करो, नहीं तो माया जिन्न खा जायेगी। यह काम दिया जाता है तुम्हारे ही कल्याण के लिए। तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे। अपने को आत्मा समझ शरीर का भान छोड़ देना है। सन्यासी माना देह सहित सब सन्यास। बाकी अपने को आत्मा समझना है। तुम जानते हो ज्ञान और योगबल से बाबा हमको सो देवी-देवता बनाते हैं। राजाई स्थापन हो रही है। यह राजयोग है। यह बातें शास्त्रों में नहीं हैं। पाण्डव इतना राजयोग सीखे फिर क्या हुआ? बस, जाकर पहाड़ पर गल मरे? फिर कैसे पता पड़े कि राजाई कैसे स्थापन हुई? अब इन बातों को तुम समझ सकते हो। बाबा कहते हैं अब मुझे याद करो और ट्रस्टी बनकर श्रीमत पर चलो। हर बात में राय लेते रहो। बच्चों आदि की शादी करानी है, मना थोड़ेही करते हैं। हर एक का हिसाब-किताब अलग है। जैसे-जैसे जो बच्चे हैं उनका हिसाब देख राय दी जाती है। कहेंगे बच्चों को शादी करानी है भल करो। पैसा तुम्हारे पास है तो मकान भल बनाओ। मना नहीं है। मकान आदि बनाए बच्चों की शादी आदि कराकर हिसाब चुक्तू करो। अभी समझते हैं कौन अच्छा पद पा सकते हैं। कितना डिफीकल्ट है। इसमें बड़ी दूरांदेश बुद्धि चाहिए। राजाई पानी है - कम बात थोड़ेही है! जब तक काम ख़लास हो जाए, बच्चों आदि का हिसाब चुक्तू कर छुट्टी करो। कोई से हिसाब है, कर्जा है वह तो पहले उतारो। यह भी समझने की बात है। कन्याओं को कोई बोझा नहीं होता है। क्रियेटर को सब काम ख़लास करना है। फिर बाबा वारिस बना सके। माया भी अच्छी रीति खटकायेगी। परन्तु तुम यह भी समझते हो बाबा तो बहुत मीठा है। सबको पवित्र बनाए वापिस ले जाने आये हैं। ऐसे बाप में तो बहुत लॅव होना चाहिए। मीठी चीज़ है ना। सतयुग में अपार सुख हैं इसलिए स्वर्ग को सब याद करते हैं। कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्ग पधारा। कितना मीठा नाम है! जो पास्ट हो जाता है उसका फिर भक्ति मार्ग में नाम बाला रहता है। सतयुग-त्रेता में तो यह बातें नहीं होती। तो बाबा ने जिन्न का काम दे दिया है - अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो, नहीं तो माया रूपी जिन्न तुमको खा जायेगा। याद करना पड़े। आत्मा निश्चय कर बाप को याद करना है। हाँ, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म तो करना ही है। 8 घण्टा तो शरीर निर्वाह के लिए चाहिए क्योंकि तुम कर्मयोगी हो। फिर तुम पुरुषार्थ करो। 8 घण्टा अपने पुरुषार्थ के लिए भी निकालो। अपने को ऐसे समझो - बस, हम बाबा के बन गये। यह शरीर तो पुराना है, इससे ममत्व मिट जाना है। मिटते-मिटते, याद करते-करते अगर किसका ममत्व रह गया तो राज्य भाग्य पा नहीं सकेंगे। विश्व का मालिक बनने में मेहनत चाहिए। बाबा आया है दु:खधाम से लिबरेट कर ले जाने इसलिए उनको लिबरेटर और गाइड, पतित-पावन कहते हैं। पण्डा भी है। समझाना है रावण राज्य का विनाश और रामराज्य की स्थापना करने बाप को आना पड़ता है। वही शान्ति की स्थापना करते हैं, उनके जो मददगार बनते हैं उनको पीस प्राइज़ मिलती है। पीस स्थापन करने वाला ही पीसफुल राज्य देते हैं। वही मोस्ट बिलवेड बाबा है जो हमको कल्प-कल्प वर्सा देते हैं, जितना श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ बनेंगे। तुम जानते हो श्री श्री से हम श्री लक्ष्मी, श्री नारायण बनते हैं। 21 जन्मों के लिए सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन हो रही है। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दूरांदेशी बन कर्मबन्धन को समाप्त करना है। कोई भी हिसाब-किताब वा कर्जा है तो उसे उतार हल्का बन वारिस बन जाना है।
2) कर्मयोगी बन कर्म भी करना है, साथ-साथ 8 घण्टा स्व के पुरुषार्थ में देना है। सभी से ममत्व जरूर मिटाना है।
वरदान:- अपने अनादि स्वरूप में स्थित रह सर्व समस्याओं का हल करने वाले एकान्तवासी भव
आत्मा का स्वधर्म, सुकर्म, स्व स्वरूप और स्वदेश शान्त है। संगमयुग की विशेष शक्ति साइलेन्स की शक्ति है। आपका अनादि लक्षण है शान्त स्वरूप रहना और सर्व को शान्ति देना। इसी साइलेन्स की शक्ति में विश्व की सर्व समस्याओं का हल समाया हुआ है। शान्त स्वरूप आत्मा एकान्तवासी होने के कारण सदा एकाग्र रहती है और एकाग्रता से परखने वा निर्णय करने की शक्ति प्राप्त होती है जो व्यवहार वा परमार्थ दोनों की सर्व समस्याओं का सहज समाधान है।
स्लोगन:- अपनी दृष्टि, वृत्ति और स्मृति की शक्ति से शान्ति का अनुभव कराना ही महादानी बनना है।
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