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ब्रह्मा बाबा के स्मृति दिवस पर कविता

𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi

संस्कार बड़े ही सुन्दर लेकर, दुनिया में वो आया
उसकी रूहानी छवि देखकर, मन सबका हर्षाया

बढ़ती उम्र के संग उसकी, आभा भी बढ़ती गई
उसकी रूहानी सुन्दरता, प्रतिदिन निखरती गई

श्रेष्ठ पुरुषार्थ करके उसने, जीवन बनाया महान
सबको लगने लगा वो, चाल चलन से देव समान

उसकी रूहानी सुन्दरता का, राज पूछा न गया
उसकी छवि को निहारे बिना, हमसे रहा न गया

हमने जान लिया ये है, शुद्ध संकल्पों का कमाल
इसीलिए उसने बनाया, हर आत्मा को खुशहाल

उम्र भले झलके चेहरे पर, फिर भी वो आकर्षक
हर पल हम उसको निहारते, बनकर मूक दर्शक

उसका हर एक कर्म देखकर, हुआ हमें एहसास
कैसे किया होगा उसने, अपने चरित्र का विकास

बातों ही बातों में कोई, आदि देव नहीं बन जाता
करके गहन तपस्या वो, खुद को पूरा ही तपाता

योगाग्नि में तपकर निकला, वो कुन्दन के समान
इसीलिये तो कहलाया, अपना ब्रह्मा बाबा महान

वृद्ध तन था फिर भी, सदा बैठा होकर सावधान
जीवन से मिटाया उसने, माया का नाम निशान

उसने दिल की उदारता से, सब बच्चों को पाला
विकारों में डूबे हुओं को, सहज रूप से निकाला

उसकी भावना में केवल, कल्याण ही था समाया
विश्व कल्याण का कार्य, उसने करके दिखलाया

पवित्रता को उसने अपना, मूल व्यक्तित्व बनाया
पवित्रता के बल पर ही, पहले नम्बर में वो आया

देह में रहकर भी ब्रह्मा बाप, रहते थे सदा विदेही
मनसा वाचा और कर्मणा, बन गये सर्व के स्नेही

बाप होकर भी जिसने, किया बच्चों का सम्मान
अहंकार का जिसमें, दिख न पाया नाम निशान

अलौकिक जन्म देकर, माँ का पार्ट भी निभाया
छत्रछाया बनकर उसने, सबको दिल में बसाया

बच्चों की कमी कमजोरी को, उसने ना जताया
उसने हर मुश्किल को, श्रीमत देकर पार कराया

एकान्तप्रिय होकर भी, बाबा थे सदा मिलनसार
श्रेष्ठ व्यवहार से किया, अपकारी पर भी उपकार

जिसने निराकारीपन का, किया पक्का अभ्यास
यादों में बसाया था जिसने, शिव को श्वासों श्वास

ईश्वरीय मत को जिसने, हृदय से किया स्वीकार
निश्चय बुद्धि बनकर पाया, विजय माला का हार

रहता था मुख पे सदा, बेफिक्र बादशाही का नूर
सम्पूर्णता की मंज़िल पाई, करके पुरुषार्थ भरपूर

देहभान त्यागकर जिसने, दिव्यता को अपनाया
कर्मातीत अवस्था से ख़ुद को, एवर रेडी बनाया

शुभ संकल्पों के प्रकम्पन, एकाग्र होकर फैलाये
दिल शिकस्त आत्माओं के, चेहरे उसने खिलाये

सहयोग दिया था जिसने, सबका सहारा बनकर
अपने बच्चों को जिसने, प्यार किया जी भरकर

हर पल उनकी आभा को, हम इसीलिए निहारते
वतन में जाकर उनके संग, अपना वक्त गुज़ारते

विश्व परिवर्तन का कर्तव्य, वो आज भी निभाता
हम सब बच्चों से मिलने, अब भी वतन से आता

ब्रह्मा बाप का करें, सच्चे दिल से हम अनुसरण
हम भी कर लें बाप समान, जिम्मेदारी का वरण

पुरुषार्थ की गति बढ़ाकर, कर्मातीत स्थिति पायें
इस वर्ष अपने आपको, ब्रह्मा बाप समान बनायें ||

" ॐ शांति "

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