
पवित्रता अपनाओ जीवन मूल्यवान बनाओ
𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi
इधर उधर देखते हुए जब, नजर मुझे वो आई
सोच न कुछ भी पाया, वो मन को इतनी भाई
शुरू हुई कोशिश मेरी, उसके नज़दीक आने की
सफल हुई चाल मेरी, उससे पहचान बढ़ाने की
मौका मिलते ही आखिर, मैं उसके करीब आया
अपना परिचय देकर मैंने, परिचय उसका पाया
रूप रंग से अच्छी लगी, मुझे बातों से भी भाई
इक पल में ही उसको, मैंने अपनी इच्छा बताई
सुनो सुन्दरी चाहता हूँ, तेरे संग जीवन बिताना
अगर हो स्वीकार तुम्हें, तो मुझको तुम बताना
कहा उसने हंसकर, क्या इतना है मुझसे प्यार
प्रणय निवेदन आपका, करती हूँ सहर्ष स्वीकार
सुनकर उसकी ये बात, मन में प्रसन्नता छाई
मैंने सोचा घड़ी मिलन की, अब आई की आई
उसने अपनी एक इच्छा, प्यार से मुझे बताई
शादी से पूर्व रखो मुझसे, एक माह की जुदाई
मन को समझाकर मैंने, शर्त कर ली स्वीकार
आखिर उस सुन्दरी से, मुझको था बेहद प्यार
एक माह गुज़रते ही, मैं गया सुन्दरी के पास
देखा जब सुन्दरी को, उड़ गए मेरे होश हवास
सुन्दरी के शरीर को, जब मेरी नजरों ने जाँचा
दिखने लगी वो मुझे, केवल हड्डियों का ढाँचा
रोते हुए मैंने पूछा, तन को कैसा रोग लगाया
बोलो अपनी सुन्दरता को, तुमने कहाँ गँवाया
सुन्दरी ने कहा कि मैंने, दो गोलियां रोज खाई
एक से हुए दस्त मुझे, और एक से उल्टी आई
एक महीना दवाई खाकर, मैंने ये अवस्था पाई
उल्टी दस्त करके मैंने, अपनी सुन्दरता गँवाई
मेरा विश्वास करके, पास वाले कमरे में जाओ
उल्टी दस्त से भरे हुए, दो घड़े देखकर आओ
बाजू वाले कमरे में जब, सचमुच जाकर आया
सुन्दरी को देखकर मैं, मन में बहुत पछताया
उसने पूछा मुझे, किस सुन्दरता पर मरते हो
अब कहो क्या सचमुच, मुझसे प्यार करते हो
चमड़ी की सुन्दरता पर, धोखा तुम न खाओ
तन है गन्दगी से भरा, खुद को ये समझाओ
आत्मशुद्धि को जीवन का, लक्ष्य तुम बनाओ
अपने निकृष्ट से जीवन को, मूल्यवान बनाओ ||
" ॐ शांति "
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