
परमात्मा होंगे विराजमान
𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi
कोई समझे या ना समझे, खुद को मैं समझूंगा
अवगुण कितने हैं मुझमें, अन्तर्मन को परखूंगा
जानूंगा जब खुद को, तब ईश्वर को पहचानूंगा
हर इच्छा होगी पूरी, जब उसकी आज्ञा मानूंगा
आत्म संशोधन का पुरुषार्थ, रोज बढ़ाता रहूंगा
स्व उन्नति की सीढ़ी पर, खुद को चढ़ाता रहूंगा
जीत अगर ना पाया मैं, खुद अपना ही विश्वास
हर पल होता रहेगा मुझे, दुख दर्द का आभास
दुनिया बड़ी ही सुन्दर है, देखूं इसके रंग अनेक
स्वभाव सभी के न्यारे न्यारे, होते कभी ना एक
सब संगी साथियों से, मैं विचार मिलाकर चलूंगा
बदलेंगे सब मेरे लिए, जब खुद को पूरा बदलूंगा
मन में विचारों का उफान, रोज मुझे भटकाएगा
मेरा मन शांत होगा तब, आत्म दर्शन हो पाएगा
शुद्ध बनाऊंगा हर संकल्प, करके आत्म मंथन
सुगंधित होगा जीवन मेरा, जैसे महकता चंदन
शांत रहेंगे मन में जब, व्यर्थ विचारों के तूफान
मेरे अंतर्मन में स्वयं, परमात्मा होंगे विराजमान ||
" ॐ शांति "
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