
नए साल का पुरुषार्थ
𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi
नए साल के आरम्भ से, पुरुषार्थ की गति बढ़ाना
निरन्तर योग अभ्यास करके, सम्पूर्णता को पाना
बाबा की अंगुली पकड़कर, अपने कदम बढ़ाना
खुद जागे रहकर सबको, अज्ञान नींद से जगाना
अमृतवेले से पहले उठकर, बाबा से योग लगाना
सारे संसार में पवित्रता, और सुख शांति फैलाना
समय से पहले सेंटर पर, तुम मुरली सुनने जाना
ईश्वरीय विद्यार्थियों के लिए, कुर्सियां भी लगाना
सेवाओं से बचने का तुम, न ढूंढना कोई बहाना
अपने सभी श्वांस संकल्प, सेवा में लगाते जाना
दधीचि तुल्य अपनी हड्डियां, हर सेवा में लगाना
अथक सेवाधारी का टाइटल, बाबा से तुम पाना
कर्मणा सेवा कर करके, तुम दुआएं भरते जाना
अपने कलियुगी संस्कारों से, पूरा ही मरते जाना
बुद्धि में छुपकर बैठे, रावण को पूरा ही जलाना
राख गंगा में बहाकर, उसका अस्तित्व मिटाना
ईश्वरीय ज्ञान प्रकाश से, अपना चरित्र चमकाना
दिव्य गुणों की सुगन्ध से, सारा संसार महकाना
इक दूजे के प्रति भेदभाव, अपने मन से मिटाना
पवित्र संस्कारों की रास, हर आत्मा से मिलाना
अपने मन में आत्म भान, हर पल जगाते जाना
अपनी याद का चार्ट, बाबा को हर रोज दिखाना
गहन ईश्वरीय याद में रहकर, भोजन को पकाना
मीठी आत्मिक दृष्टि देकर, सबको तुम खिलाना
लौकिक रिश्ते भूलकर, बाबा को दिल में बसाना
सर्व सम्बन्धों का सुख, मीठे बाबा से तुम पाना
योग बल जमा कर, अपनी एकाग्रता को बढ़ाना
एक ही संकल्प में अपने, मन बुद्धि को टिकाना
अपने दिल में इतना तुम, मीठे बाबा को समाना
अपने और बाबा के बीच का, हर अन्तर मिटाना
अपने आचरण द्वारा, सतयुगी दिव्यता झलकाना
बाप की प्रत्यक्षता का ध्वज, पुरे विश्व में लहराना
उड़ती कला में जाकर, सर्वोच्च शिखर को पाना
बनकर सम्पूर्ण पावन, अपने घर को उड़ते जाना ||
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