Brahma Kumaris
आज की मुरली 14 Dec 2020- Brahma Kumaris Murli today in Hindi
आज की शिव बाबा की साकार मुरली। Date: 14 December 2020 (Monday). बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. (Official Murli blog~ listen + read daily murli)
"मीठे बच्चे - तुम्हारे दु:ख के दिन अब पूरे हुए, तुम अब ऐसी दुनिया में जा रहे हो जहाँ कोई भी अप्राप्त वस्तु नहीं "
प्रश्नः-
किन दो शब्दों का राज़ तुम्हारी बुद्धि में होने कारण पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य रहता है?
उत्तर:-
उतरती कला और चढ़ती कला का राज़ तुम्हारी बुद्धि में है। तुम जानते हो आधाकल्प हम उतरते आये, अभी है चढ़ने का समय। बाप आये हैं नर से नारायण बनाने की सत्य नॉलेज देने। हमारे लिए अब कलियुग पूरा हुआ, नई दुनिया में जाना है इसलिए इससे बेहद का वैराग्य है।
♫ मुरली सुने ➤
गीत:-
धीरज धर मनुवा...
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। रूहानी बाप बैठ समझाते हैं - यह एक ही पुरुषोत्तम संगमयुग है जबकि कल्प-कल्प बाप आकर रूहानी बच्चों को पढ़ाते हैं। राजयोग सिखलाते हैं। बाप रूहानी बच्चों को कहते हैं मनुवा अर्थात् आत्मा, हे आत्मा धीरज धरो। आत्माओं से बात करते हैं। इस शरीर का मालिक आत्मा है। आत्मा कहती है - मैं अविनाशी आत्मा हूँ, यह मेरा शरीर विनाशी है। रूहानी बाप कहते हैं - मैं एक ही बार कल्प के संगम पर आकर तुम बच्चों को धीरज देता हूँ कि अब सुख के दिन आते हैं। अभी तुम दु:खधाम रौरव नर्क में हो। सिर्फ तुम नहीं हो परन्तु सारी दुनिया रौरव नर्क में है, तुम जो मेरे बच्चे बने हो, रौरव नर्क से निकलकर स्वर्ग में चल रहे हो। सतयुग, त्रेता, द्वापर पास हो गया। कलियुग भी तुम्हारे लिए पास हो गया। तुम्हारे लिए यह पुरुषोत्तम संगमयुग है जबकि तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते हो। आत्मा जब सतोप्रधान बन जायेगी तो फिर यह शरीर भी छोड़ेगी। सतोप्रधान आत्मा को सतयुग में नया शरीर चाहिए। वहाँ सब कुछ नया होता है। बाप कहते हैं बच्चे अब दु:खधाम से सुखधाम में चलना है, उसके लिए पुरुषार्थ करना है। सुखधाम में इन लक्ष्मी-नारायण की राजाई थी। तुम पुरुषार्थ कर रहे हो नर से नारायण बनने का। यह सत्य नर से नारायण बनने की नॉलेज है। भक्ति मार्ग में हर पूर्णमासी पर कथा सुनते आये हो, परन्तु वह है ही भक्ति मार्ग। उसे सत्य मार्ग नहीं कहेंगे, ज्ञान मार्ग है सत्य मार्ग। तुम सीढ़ी उतरते-उतरते झूठ खण्ड में आते हो। अभी तुम जानते हो सत्य बाप से हम यह नॉलेज पाकर 21 जन्म देवी-देवता बनेंगे। हम थे, फिर सीढ़ी उतरते आये। उतरती कला और चढ़ती कला का राज़ तुम्हारी बुद्धि में है। पुकारते भी हैं हे बाबा आकर हमको पावन बनाओ। एक बाप ही पावन बनाने वाला है।
बाप कहते हैं - बच्चे, तुम सतयुग में विश्व के मालिक थे। बहुत धनवान, बहुत सुखी थे। अभी बाकी थोड़ा समय है। पुरानी दुनिया का विनाश सामने खड़ा है। नई दुनिया में एक राज्य, एक भाषा थी। उसको कहा जाता है अद्वैत राज्य। अभी कितना द्वैत है, अनेक भाषायें हैं। जैसे मनुष्यों का झाड़ बढ़ता जाता है, भाषाओं का भी झाड़ वृद्धि को पाता जाता है। फिर होगी एक भाषा। गायन है ना वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट। मनुष्यों की बुद्धि में नहीं बैठता। बाप ही दु:ख की पुरानी दुनिया को बदल सुख की नई दुनिया स्थापन करते हैं। लिखा हुआ है प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा डिटीज्म की स्थापना। यह है राजयोग की पढ़ाई। यह ज्ञान जो गीता में लिखा हुआ है, बाप ने जो सम्मुख सुनाया वह फिर मनुष्यों ने भक्ति मार्ग के लिए बैठ लिखा है, जिससे तुम उतरते आये हो। अभी भगवान तुमको पढ़ाते हैं ऊपर चढ़ने के लिए। भक्ति को कहा ही जाता है उतरती कला का मार्ग। ज्ञान है चढ़ती कला का मार्ग। यह समझाने में तुम डरो मत। भल ऐसे भी हैं जो इन बातों को न समझने कारण विरोध करेंगे, शास्त्रवाद करेंगे। परन्तु तुमको कोई से शास्त्रवाद नहीं करना है। बोलो शास्त्र, वेद, उपनिषद वा गंगा स्नान करना, तीर्थ आदि करना यह सब भक्ति काण्ड है। भारत में रावण भी है बरोबर, जिसकी एफीजी जलाते हैं। वैसे तो दुश्मनों की एफीजी जलाते हैं, अल्पकाल के लिए। यह इस एक रावण की ही एफीज़ी हर वर्ष जलाते आते हैं।
बाप कहते हैं तुम गोल्डन एजेड बुद्धि से आइरन एजेड बुद्धि हो गये हो। तुम कितने सुखी थे। बाप आते ही हैं सुखधाम की स्थापना करने। फिर बाद में जब भक्ति मार्ग शुरू होता है तो दु:खी बनते हैं। फिर सुखदाता को याद करते हैं, वह भी नाम मात्र क्योंकि उनको जानते नहीं। गीता में नाम बदल दिया है। पहले-पहले तुम यह समझाओ कि ऊंच ते ऊंच भगवान एक है, याद भी उनको करना चाहिए। एक को याद करना उसको ही अव्यभिचारी याद, अव्यभिचारी ज्ञान कहा जाता है। तुम अभी ब्राह्मण बने हो तो भक्ति नहीं करते हो। तुमको ज्ञान है। बाप पढ़ाते हैं जिससे हम यह देवता बनते हैं। दैवीगुण भी धारण करने हैं इसलिए बाबा कहते हैं अपना चार्ट रखो तो मालूम पड़ेगा हमारे में कोई आसुरी गुण तो नहीं हैं। देह-अभिमान है पहला अवगुण फिर दुश्मन है काम। काम पर जीत पाने से ही तुम जगतजीत बनेंगे। तुम्हारा उद्देश्य ही यह है, इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य में कोई अनेक धर्म थे नहीं। सतयुग में देवताओं का ही राज्य होता है। मनुष्य होते हैं कलियुग में। हैं भल वह भी मनुष्य, परन्तु दैवीगुणों वाले। इस समय सब मनुष्य हैं आसुरी गुणों वाले। सतयुग में काम महाशत्रु होता नहीं। बाप कहते हैं इस काम महाशत्रु पर जीत पाने से तुम जगतजीत बनेंगे। वहाँ रावण होता नहीं। यह भी मनुष्य समझ नहीं सकते। गोल्डन एज से उतरते-उतरते तमोप्रधान बुद्धि बने हैं। अब फिर सतोप्रधान बनना है। उसके लिए एक ही दवाई मिलती है - बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म हो जायेंगे। तुम बैठे हो पापों को भस्म करने तो फिर आगे पाप नहीं करना चाहिए। नहीं तो वह सौ गुणा बन जायेगा। विकार में गये तो सौ गुणा दण्ड पड़ जायेगा, फिर वह मुश्किल चढ़ सकते हैं। पहला नम्बर दुश्मन है यह काम। 5 मंजिल से गिरेंगे तो हडगुड एकदम टूट जायेंगी। शायद मर भी जायें। ऊपर से गिरने से एकदम चकनाचूर हो जाते हैं। बाप से प्रतिज्ञा तोड़ काला मुंह किया तो गोया आसुरी दुनिया में चला गया। यहाँ से मर गया। उनको ब्राह्मण भी नहीं, शूद्र कहा जायेगा।
बाप कितना सहज समझाते हैं। पहले तो यह नशा रहना चाहिए। अगर समझो कृष्ण भगवानुवाच भी हो, वह भी तो जरूर पढ़ा करके आपसमान बनायेंगे ना। परन्तु कृष्ण तो भगवान हो न सके। वह तो पुनर्जन्म में आते हैं। बाप कहते हैं मैं ही पुनर्जन्म रहित हूँ। राधे-कृष्ण, लक्ष्मी-नारायण अथवा विष्णु एक ही बात है। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण और लक्ष्मी-नारायण का ही बचपन है राधे-कृष्ण। ब्रह्मा का भी राज़ समझाया है - ब्रह्मा-सरस्वती सो लक्ष्मी-नारायण। अब ट्रांसफर होते हैं। पिछाड़ी का नाम इनका ब्रह्मा रखा है। बाकी यह ब्रह्मा तो देखो एकदम आइरन एज में खड़ा है। यही फिर तपस्या कर कृष्ण वा श्री नारायण बनते हैं। विष्णु कहने से उसमें दोनों आ जाते हैं। ब्रह्मा की बेटी सरस्वती। यह बातें कोई समझ न सकें। 4 भुजा ब्रह्मा को भी देते हैं क्योंकि प्रवृत्ति मार्ग है ना। निवृत्ति मार्ग वाले यह ज्ञान दे नहीं सकते। बहुतों को बाहर से फंसा कर ले आते हैं कि चलो हम प्राचीन राजयोग सिखलायें। अब संन्यासी राजयोग सिखला न सकें। अब ईश्वर आये हैं, तुम अब उनके बच्चे ईश्वरीय सम्प्रदाय बने हो। ईश्वर आये हैं तुमको पढ़ाने। तुमको राजयोग सिखला रहे हैं। वह तो है निराकार। ब्रह्मा द्वारा तुमको अपना बनाया है। बाबा-बाबा तुम उनको कहते हो, ब्रह्मा तो बीच में इन्टरप्रेटर है। भाग्यशाली रथ है। इस द्वारा बाबा तुमको पढ़ाते हैं। तुम भी पतित से पावन बनते हो। बाप पढ़ाते हैं - मनुष्य से देवता बनाने। अभी तो रावण राज्य, आसुरी सम्प्रदाय है ना। अभी तुम ईश्वरीय सम्प्रदाय बने हो फिर दैवी सम्प्रदाय बनेंगे। अभी तुम पुरुषोत्तम संगमयुग पर हो, पावन बन रहे हो। संन्यासी लोग तो घरबार छोड़ जाते हैं। यहाँ बाप तो कहते हैं - भल स्त्री-पुरुष घर में इकट्ठे रहो, ऐसे मत समझो स्त्री नागिन है इसलिए हम अलग हो जायें तो छूट जायेंगे। तुमको भागना नहीं है। वह हद का संन्यास है जो भागते हैं, तुम यहाँ बैठे हो परन्तु तुमको इस विकारी दुनिया से वैराग्य है। यह सब बातें तुम्हें अच्छी रीति धारण करनी है, नोट करना है और परहेज भी रखनी है। दैवीगुण धारण करने हैं। श्रीकृष्ण के गुण गाये जाते हैं ना। यह तुम्हारी एम आब्जेक्ट है। बाप नहीं बनते, तुमको बनाते हैं। फिर आधाकल्प के बाद तुम नीचे उतरते, तमोप्रधान बनते हो। मैं नहीं बनता हूँ, यह बनते हैं। 84 जन्म भी इसने लिए हैं। इनको भी अभी सतोप्रधान बनना है, यह पुरुषार्थी है। नई दुनिया को सतोप्रधान कहेंगे। हर एक चीज़ पहले सतोप्रधान फिर सतो-रजो-तमो में आती है। छोटे बच्चे को भी महात्मा कहा जाता है क्योंकि उनमें विकार होते नहीं, इसलिए उनको फूल कहा जाता है। संन