top of page
Writer's pictureWebsite Admin

BK murli today in Hindi 8 Sep 2018 Aaj ki Murli


Brahma kumari murli today Hindi BapDada Madhuban 08-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - ज्ञान सागर बाप से वर्सा लेना है तो 20 नाखूनों का जोर देकर भी पढ़ाई जरूर पढ़ो, पढ़ाई से ही राजाई वा जीवनमुक्ति पद प्राप्त होगा''

प्रश्नः- ज्ञान मार्ग में सदा कायम कौन रह सकता है? ऊंच पद की प्राप्ति का आधार क्या है?

उत्तर:- जिनका पढ़ाई के सिवाए दूसरा किसी भी बात में शौक नहीं है, ज्ञान की परिपक्व अवस्था है, वही इस ज्ञान मार्ग में कायम रह सकते हैं। बाकी ध्यान दीदार की आश रखना, खेलपाल करना, इससे कोई फ़ायदा नहीं, और ही माया प्रवेश कर लेती है फिर बाप का हाथ वा पढ़ाई छोड़ देते हैं। ऊंच पद के लिए पढ़ाई पर फुल अटेन्शन चाहिए।

गीत:- तुम्हीं हो माता.......

ओम् शान्ति।ओम् शान्ति का अर्थ तो बच्चों को समझाया गया है। जो भी रिलीजस माइन्डेड अथवा धर्मात्मा पुरुष होते हैं, मन्दिर टिकाणें में जाते हैं तो उनके मुख से ओम् शान्ति अक्षर निकलता है। परन्तु वह अर्थ नहीं समझते। हम भी कहते हैं ओम् शान्ति, अहम् आत्मा। आत्मा अक्षर जरूर आता है। सुप्रीम सोल अथवा आत्मा कहती है ओम् शान्ति। मैं जो आत्मा हूँ, मेरा स्वधर्म है शान्त। आत्मा अपना आक्यूपेशन बतलाती है। बाप भी कहते हैं ओम् शान्ति। हम भी आत्मा हैं परन्तु मुझे परम आत्मा कहते हैं क्योंकि मैं सदैव परमधाम में रहता हूँ। मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। बाप सम्मुख आकर कहते हैं तुम पुनर्जन्म में आते हो, तुम देहधारी हो। सूक्ष्मवतन वाले भी सूक्ष्म देहधारी हैं। मै इनसे भी परे हूँ। मुझे कोई स्थूल शरीर नहीं है। सूक्ष्म शरीरधारी को कहते हैं - यह ब्रह्मा है, यह विष्णु, यह शंकर है। नाम तो शरीर का हुआ ना। आत्मा का तो नहीं है। आत्मा शरीर धारण करती है, तब शरीर पर नाम पड़ता है। कोई मरते हैं तो कहेंगे फलाने का शरीर छूट गया। नाम तो शरीर पर रह जाता है फिर दूसरा शरीर लेते हैं। परमपिता परमात्मा के लिए तो ऐसे नहीं कहेंगे कि वह एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। सबका शरीर पर नाम पड़ता है। तुम बच्चे मेरे बनते हो तो तुमको भी दूसरा नाम देता हूँ। जैसे गुरू लोग नाम देते हैं ना। आजकल कन्या शादी करती है तो उनका भी नाम बदलता है। पुरुष का नहीं बदलता क्योंकि पुरुष को तो धन्धा करना है अपने नाम से। माताओं का तो धन्धा है नहीं, इसलिए उनका नाम बदल सकता है। पुरुषों का इन्श्योरेन्स धन्धे आदि में नाम है। अब बाप समझाते हैं - सब याद तो करते हैं तुम मात-पिता हो और साथी हो, खिवैया हो, तुम हमको साथ ले चलते हो। देखो, कितने सम्बन्धों में आते हैं। शरीर छोड़कर फिर आपके साथ चलना है। तुम बच्चे जानते हो - खिवैया हमको साथ में ले जायेंगे।बाप की कितनी महिमा है! फिर वह कब आयेंगे? कब आकर साथी बनेंगे? यह नहीं जानते। कहते हैं जब भक्ति मार्ग का अन्त होता है तब भक्तों की रक्षा करने मुझे आना पड़ता है। मुझे खिवैया बन वापिस ले जाना है। तुम जानते हो कैसे आकर मात-पिता बने हैं। इनको ही खिवैया, गुरू कहा जाता है। छी-छी दुनिया, जीवनबन्ध से जीवनमुक्ति में ले जाते हैं इसलिए उनको पतित-पावन खिवैया कहा जाता है। नई दुनिया कहा जाता है - सतयुग को। दुनिया तो यही है, सिर्फ पुरानी दुनिया का विनाश होता है। जैसे पुराने घर में रहकर नया बनाए फिर पुराना घर छोड़ना होता है ना, यह भी जब स्थापना हो जाती है तो फिर पुरानी दुनिया का विनाश होता है। त्रिमूर्ति का भी अर्थ समझाया है। ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना करना - यह परमपिता परमात्मा का ही काम है। उन्हों द्वारा कराते हैं क्योंकि करनकरावनहार है। बाप आकर सम्मुख समझाते हैं। ब्रह्मा द्वारा सहज राजयोग और ज्ञान तुम ब्रह्मा मुख वंशावली को बैठ सिखलाता हूँ। भविष्य 21 जन्म के लिए तुम सो देवी-देवता पद पायेंगे, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार।तुम जानते हो हम मात-पिता से पढ़ रहे हैं, यह है ही ईश्वरीय विश्व-विद्यालय। अगर पढ़ाई को छोड़ देंगे तो समझा जायेगा इनकी त़कदीर में नहीं है। स्कूल तो चलना ही है। बाबा आकर इस ब्रह्मा तन द्वारा पढ़ाते हैं। तो बच्चे भल कहाँ भी हों, किसी भी सेन्टर पर हों, जानते हो ज्ञान सागर पारलौकिक परमपिता परमात्मा से हमको जीवनमुक्ति का अथवा राजाई का वर्सा पाना है। अगर हम पढ़ाई छोड़ देंगे तो वर्सा पा नहीं सकेंगे। बाप तो आये हैं साथ ले जाने। नई दुनिया स्थापन हो जायेगी फिर सबको खिवैया ले जायेंगे। तुम खिवैया को भी जानते हो और जिन द्वारा स्थापना, विनाश, पालना कराते हैं उन्हों को भी तुम जानते हो। फिर इस पढ़ाई से जो लक्ष्मी-नारायण बन राज्य करते हैं उनको भी तुम जानते हो। समझते हो हम बरोबर इस पढ़ाई से राजाई पद प्राप्त कर रहे हैं। जितना जो पढ़ेंगे...... पढ़ाई नहीं पढ़ेंगे तो पद भ्रष्ट हो पड़ेगा। यह है राजयोग की पढ़ाई। बहुत बच्चे पढ़ाई पढ़ते-पढ़ते थक जाते हैं। नहीं पढ़ना माना थक जाना। कहते हैं - बस, आगे हम नहीं पढ़ सकते हैं। इस पढ़ाई में खर्चे की बात तो नहीं है। उस पढ़ाई में गरीब बिचारे पढ़ाई का पैसा नहीं दे सकते हैं तो पढ़ना छोड़ देते हैं। परन्तु जिनको पढ़ाई का अच्छा शौक होता है तो गवर्मेन्ट को अप्लाई करते हैं कि हम पढ़ना चाहते हैं परन्तु पैसा नहीं है। फिर उनको गवर्मेन्ट पैसा देती है। कैसे भी करके रिक्वेस्ट करते हैं कि मैं पढ़ना चाहता हूँ, मेरे बाप के पास पैसा नहीं है, हमें मदद करो। गवर्मेन्ट पास पैसा न होने कारण रिफ्यूज़ कर देती है। समझते हैं हमको पढ़ना तो जरूर है फिर क्या करेंगे? बड़े साहूकार वा दानी पुरुष के पास जायेंगे। हमारे मात-पिता गरीब हैं हम पढ़कर सर्विस करना चाहते हैं, आप हमें मदद कर सकेंगे? रिलीजस माइन्डेड जो होंगे वह मदद दे देंगे। कन्यायें ऐसे रिक्वेस्ट नहीं कर सकती, पुरुष कर सकते हैं। पढ़ाई से इनकम बहुत होती है। यहाँ यह पढ़ाई भी है और यह सौदा भी है। बाप सौदागर, रत्नागर है और फिर ज्ञान सागर है।मात-पिता बेहद का ज्ञान सागर कहते हैं - मैं कल्प पहले मुआफिक तुमको राजयोग सिखाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। सब प्वाइन्ट्स धारण करनी हैं। बालिग बुद्धि अच्छी रीति धारण कर सकते हैं। बुद्धि पर ही सारा मदार है। कोई की सतोप्रधान, कोई की सतो, कोई की रजो, तमो, बुद्धि है। उस स्कूल में भी स्टूडेन्ट्स जानते हैं इनकी बुद्धि कैसी है। सतोप्रधान बुद्धि वाले पास विद ऑनर होते हैं। उन्हें ही मॉनीटर आदि बनाते हैं। स्कॉलरशिप भी मिल जाती है। यह फिर बेहद का स्कूल है। इनमें भी सतो, रजो, तमो बुद्धि हैं। यहाँ मर्तबा एक ही है। यह है ही राजयोग। ईश्वरीय पढ़ाई एक ही है। बाप कहते हैं मैं तुम सब बच्चों को राजयोग सिखाता हूँ। तो जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। ऊंच पद को तो समझ गये हो। नम्बरवार पद पायेंगे। बाप का तो लॅव सब पर है। सबको माया की जंजीरों से छुड़ाने आये हैं। और कोई ऐसे कह नहीं सकेंगे कि कल्प-कल्प हम तुमको राजयोग सिखलाते हैं। यह बाप ही कहते हैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे, युगे आता हूँ। मनुष्यों ने फिर युगे-युगे लिख कितनी भूल कर दी है। बाप कहते हैं मैं पतित-पावन हूँ। मैं आता हूँ तुमको पावन बनाने, कलियुग अन्त और सतयुग आदि के संगम पर। इस समय बाबा आया हुआ है तो अच्छी रीति पढ़ना है, विनाश भी होने वाला है। 20 नाखून का जोर देकर पढ़ना है, हिम्मत दिखानी है। पढ़ाई नहीं छोड़नी है। जो पढ़ाई छोड़ देते हैं वह नापास हो गिर पड़ते हैं। बच्चों को सावधानी मिलती है। कोई भी काम वा क्रोध का वा लोभ, मोह का भूत नहीं आना चाहिए। दिल दर्पण में अपने को देखते रहो - मैं लायक हूँ लक्ष्मी को वरने? नारद का भी एक मिसाल लगा दिया है। भक्त तो तुम सब हो ना। भक्ति मार्ग में मेल्स में नारद उत्तम गाया हुआ है और फीमेल्स में मीरा। वह है भक्ति मार्ग। ज्ञान मार्ग में फिर देखते हो - मम्मा-बाबा का नाम बाला है। फिर उनकी विजय माला भी बनी हुई है। सिमरण उनको किया जाता है जो सुख देते हैं। उसका यादगार बनाते हैं। अभी उन्हों ने क्या किया? कोई ने करके कॉलेज खोल, दान-पुण्य बहुत किया, और क्या करेंगे? अभी फिरंगियों से (अंग्रेजों से) राज्य ले कांग्रेस ने राज्य किया। बाप कहते हैं यह तो रुण्य के पानी (मृगतृष्णा) मिसल राज्य है। भल कितने भी सुख हैं परन्तु यह हैं सब रुण्य के पानी मिसल। बाहर का भभका बहुत है। यह साइन्स भी 100 वर्ष चलती है। यह दादा जब बाम्बे में सर्विस पर था तो यह बिजली-टेलीफोन आदि कुछ नहीं था। अभी साइन्स ने कितना कमाल किया है। अभी बाकी थोड़े वर्ष हैं। साइन्स का घमण्ड 100 वर्ष से शुरू हुआ है। सतयुग के 100 वर्ष में तो पता नहीं क्या कर देंगे। वहाँ इन सब चीज़ों में बल रहता है जो तुम यहाँ से ले जाते हो। अखण्ड, अटल, सुख-शान्तिमय राज्य करने के लिए तुम बल ले जाते हो। तो पढ़ाई पर इतना अटेन्शन देना चाहिए, इतना पुरुषार्थ करना चाहिए।तुम जानते हो इस मात-पिता से सुख घनेरे मिलते हैं फिर अगर चलते-चलते छोड़ देते हैं तो गोया सुनते ही नहीं। न सुना जाकर अपने धन्धे-धोरी में लगा तो ख़लास। जो पाया सो पाया। हाथ छोड़ने बाद फिर माया एकदम हप कर लेती है। गज को माया ग्राह ने हप कर लिया। यह तो होना ही है। तुम देखते भी हो - कैसे अच्छे-अच्छे, बड़े-बड़े निमंत्रण देने वाले, सेन्टर खोलने वाले भी पढ़ाई को छोड़ देते हैं। कहेंगे - ड्रामा अनुसार इनकी त़कदीर में इतना ही था। फिर उनका क्या हाल होगा? माया एकदम खा लेती है। कितने ख़त्म हुए। बहुत ध्यान में जाने वाले, खेल-पाल करने वाले आज हैं नहीं। यह ध्यान-दीदार की आशायें कभी नहीं रखनी चाहिए। आशा रखते हैं तो आशा में विघ्न पड़ जाते हैं। माया के भूत भी प्रवेश कर लेते हैं। ध्यान का कितना पार्ट बजाते थे। जो 5-7 रोज़ ध्यान में बचपन के पार्ट में रहते थे, महारानी बन जाते थे, आज वह हैं नहीं। इससे कोई फ़ायदा नहीं। ज्ञान की परिपक्व अवस्था वाले ही कायम रह सकते हैं। कभी भी ध्यान में जाने की आशा नहीं रखनी चाहिए। बाबा जो पढ़ाते हैं वह धारण करना है। जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। तुम बच्चों को भी याद रखना है हमको परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं। हम पढ़कर 21 जन्म के लिए ऊंच पद पाते हैं फिर हम ही पूज्य से पुजारी बनते हैं। जो ब्राह्मण कुल के बनते हैं वही ऐसे कह सकते हैं। दूसरा कोई कह न सके। भारत का ही खेल बना हुआ है। तुम कहेंगे हम पूज्य सो देवी-देवता बनते हैं। पूज्य ही फिर गिरकर पूरे 84 जन्म लेते हैं। बच्चों को यह सब मालूम है। शिवबाबा का आक्यूपेशन भी तुम जानते हो। सेकेण्ड में निश्चय से तुम वर्सा ले सकते हो। कहते हैं हम ईश्वर के बने हैं फिर ईश्वर को फारकती देना - वन्डर है ना। स्कूल में पढ़ते हैं, अच्छे नम्बर में पास हुआ तो उनको सपूत समझा जायेगा। स्टूडेन्ट अपने को भी सपूत समझेगा। बाप और टीचर भी कहेंगे यह सपूत है। यह तो बाप, टीचर, गुरू एक ही है। बाप भी है फिर टीचर बन हमको पढ़ाते हैं फिर साथ भी ले जायेंगे। बाप कहते हैं हम साथ इकट्ठे चलेंगे। तुम्हारी ज्योति बुझ गई थी, अब जग रही है। हमारी ज्योति सदैव जगी हुई है। है सारी आत्मा की ही बात। तुम जानते हो हम आत्मा अशरीरी आई फिर अशरीरी हो जाना है। हमारा खेल पूरा होकर फिर रिपीट होना है। यह तुम बच्चों को बुद्धि में समझ है।तुम मात-पिता....... तुम्हारी पढ़ाई की कृपा से हमको कितने सुख घनेरे मिलते हैं। ऐसे मात-पिता को कभी भूलना, छोड़ना नहीं चाहिए। बाप कहते हैं ऐसे मात-पिता, बापदादा को, जो तुमको इतना वर्सा देते हैं, चिट्ठी लिखते रहेंगे तो बाबा समझेंगे - याद करते हैं। बाबा की तो रोज़ याद-प्यार जाती ही है मुरली में। बच्चों की चिट्ठी देरी से आयेगी तो समझेंगे पूरा याद नहीं करते हैं। बाप को तो लिखने की दरकार नहीं है। बाप की तो रोज़ मुरली जाती है। याद-प्यार बाबा देते ही हैं। वह तो जागती ज्योत है। बच्चों को समझाते हैं पत्र जरूर लिखते रहो। अनन्य बच्चों की फिक्र नहीं रहती है। हिलने वालों को सावधानी दी जाती है - भूल नहीं जाना, पढ़ते रहना। समाचार तो बाबा के पास सब आते हैं ना। रजिस्टर में नाम दाखिल रहता है। पूछते हैं यह बच्चा अबसेन्ट क्यों है? रोज़ अबसेन्ट रहते तो समझा जाता - मर गया। बाबा पूछते हैं - फलाने बच्चे का कोई समाचार नहीं आया है? तो लिखते हैं फलाना अभी आता ही नहीं है, संशयबुद्धि हो गया है। अच्छा, आगे चलकर शायद निश्चयबुद्धि हो जाये। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) विजय माला में आने की हिम्मत दिखानी है। सिमरण लायक बनने के लिए सबको सुख देना है।

2) सपूत स्टूडेन्ट बन बाप-टीचर का नाम बाला करना है। कभी भी काम व क्रोध के भूत के वश हो उल्टा काम नहीं करना है।

वरदान:- सर्व रूहानी खजानों से सम्पन्न बन सदा सन्तुष्ट रहने वाले आलराउण्ड सेवाधारी भव l

आलराउण्ड सेवाधारी अर्थात् मास्टर सुख दाता, मास्टर शान्ति दाता, मास्टर ज्ञान दाता। दाता सदा सम्पन्न मूर्त होते हैं। जैसा स्वयं होंगे वैसा औरों को बनायेंगे। रूहानी सेवाधारी अर्थात् एवररेडी और आलराउन्ड। आलराउन्डर वही बन सकते जो सम्पन्न हैं, सम्पन्न ही सन्तुष्ट होंगे और सबको सन्तुष्ट करेंगे। किसी भी प्रकार की अप्राप्ति असन्तुष्टता पैदा करती है। सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट करने की विधि है सम्पन्न और दाता बनना।

स्लोगन:- शुभ भावना, शुभ कामना की गोल्डन गिफ्ट साथ हो तो किसी भी आत्मा का परिवर्तन कर सकते हो।

7 views

Related Posts

See All

Commentaires


bottom of page