top of page
Writer's pictureWebsite Admin

BK murli today in Hindi 15 June 2018 - Aaj ki Murli


Brahma Kumaris murli today in Hindi - Aaj ki Murli - BapDada - Madhuban - 15-06-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन “

मीठे बच्चे-मन्मनाभव रूपी इन्जेक्शन सर्व दु:खों की बीमारी से मुक्त करने वाला है, देही- अभिमानी बनो तो पवित्रता-सुख-शान्ति का वर्सा मिल जायेगा”

प्रश्न: बाप की किस महिमा का प्रैक्टिकल टेस्ट तुम बच्चों ने किया है?

उत्तर- बाप की महिमा में गाते हैं-कितना मीठा, कितना प्यारा शिव भाेला भगवान... इसका प्रैक्टिकल टेस्ट तुम बच्चों ने किया है। तुम अनुभव से कहते हो मीठा बाबा हमको कितना मीठा बना रहे हैं! बाबा अपने मीठे बच्चों को आशीर्वाद भी करते-बच्चे, सदा जीते रहो। मोस्ट बिलवेड बाप के बने हो तो उन जैसा मीठा फूल बनो।

गीत: धीरज धर मनुवा...

ओम् शान्ति।मनुष्य जब बीमार होते हैं तो सर्जन धीरज देते हैं छूटने लिए। वह तो है जिस्मानी बीमारी। अब तुम बच्चों को पता पड़ा है कि यह है रूहानी सर्जन। रूह को ही बीमारी लगी है, इसलिए रूह को ज्ञान का इन्जेक्शन लगा रहे हैं। आत्मा को ही ज्ञान इन्जेक्शन लगता है, न कि शरीर को। कोई सुई वा दवाई आदि नहीं है। यह एक ही इन्जेक्शन काफी है। कौन सा इन्जेक्शन? मन्मनाभव, अशरीरी भव-यह इन्जेक्शन है। देही-अभिमानी हो रहने से पवित्रता-सुख-शान्ति का वर्सा जमा होता है। जितना-जितना देही-अभिमानी बन बाप को याद करते रहेंगे, उतना वर्सा जमा होता रहेगा। बच्चे जानते हैं आधा-कल्प के दु:ख दूर करने वाला आया हुआ है। हर-हर महादेव कहते हैं। अब वह महादेव नहीं है, दु:ख तो बाप ही हरेंगे। दु:ख हर कर सुख देने वाला बाप है। बच्चे जानते हैं बरोबर हम आधा-कल्प से कुछ न कुछ दु:ख देखते आये हैं। अब बीमारी बढ़ गई है। पाँच विकारों ने बहुत दु:खी किया है इसलिए बाप कहते हैं यह जो कल्प का खाता है, उनको अब ठीक करो। व्यापारी लोग 12 मास का खाता ना और जमा का रखते हैं ना। नौकरी वाले ना व जमा को नहीं जानते। ऊंच ते ऊंच व्यापार है जवाहरात का। यह भी हैं ज्ञान-रत्न। व्यापारी लोग जानते हैं हमारी कमाई होती है या कहाँ नुकसान होता है। कभी नुकसान, कभी फायदा, यह तो चलता ही है। बाप कहते हैं तुम्हारा आधा-कल्प जो खाता ना की तरफ चला गया है, अब फिर जमा करना है। ना की तरफ क्यों गया है? क्योंकि तुम देह-अभिमानी बन पड़े हो, माया रावण ने खाता खराब कर दिया है। माया ने सबको घाटे में डाला है इसलिए कंगाल बन पड़े हैं। अभी तुम बच्चे कहते हो-बाबा, आप तो सत्य कहते हो, बरोबर माया ने बड़ा घाटा डाला है। घाटा होते-होते सब कौड़ी तुल्य बन पड़े हैं। अभी सत्य बाप हमको नर से नारायण बनने की मत दे रहे हैं। जिस श्रीमत से हम श्रेष्ठ बनेंगे और हमारा आधा-कल्प के लिए जमा हो जाता है। यह एक ही बार खाता जमा होता है। बाप कहते हैं अच्छी रीति खाता जमा करना है। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ पद पाना है तो देही-अभिमानी भव। बाप को याद करो। आत्मा ही पतित बनती है इसलिए पाप-आत्मा, पुण्य-आत्मा कहा जाता है। पाप शरीर नहीं कहा जाता है। पाप-आत्मा बनाती है माया रावण। बाप को याद ही नहीं करते तो पुण्य-आत्मा कैसे बनें। अशुद्ध अहंकार है नम्बरवन भूत। माया ने कितना घाटा डाला है। दुनिया में इस फायदे और घाटे का किसको पता नहीं है। यह बाप ही बतलाते हैं। श्रीमत भगवानुवाच। भगवान एक होता है जो आकर राजयोग सिखलाते हैं। यह योग बहुत फायदे का है। मनुष्य को चढ़ा देता है। सिर्फ एक बात में निश्चय रहे और एक बाप को याद करते रहो, बस। यह तो जानते हो धीरज रखना है। बरोबर हमारी तकदीर जगी है। बाबा हमको पार ले जाने वाला है। इस वेश्यालय से शिवालय में ले जाने बाबा आया है। खिवैया एक ही है। पतित-पावन ही खिवैया ठहरा। होशियार तैरने वाले जो होते हैं वह बहुत युक्ति से तैरते हैं। सहज रीति तैरना सिखलाते हैं। तुम बच्चे भी जानते हो-बाबा हमको कितना सहज कलियुगी किनारे से सतयुगी किनारे में ले जा रहे हैं, बुद्धियोग अथवा याद द्वारा। यह आत्माओं से बात कर रहे हैं। बाप ही आकर आत्माओं की ज्योति जगाते हैं। उनको शमा भी कहा जाता है। ज्योति स्वरूप भी कहा जाता है। मनुष्य मरते हैं तो दीवा जगाकर रखते हैं। उसमें घृत डालते रहते हैं। तुमको ज्ञान घृत आधा-कल्प से कहाँ भी न मिलने कारण सबके दीवे प्राय: जैसे बुझ गये हैं। बाकी थोड़ा जाकर रहा है। इस समय है घोर अंधियारा। सतयुग में होता है घोर सोझरा। अब फिर से तुम आत्माओं के दीप जग रहे हैं। साथ में ज्ञान का तीसरा नेत्र भी तुमको मिल रहा है। पत्रों में भी लिखते हैं मीठे-मीठे लाडले सिकीलधे बच्चों.... बाप भी बहुत मीठा है ना। तुमको प्रैक्टिकल में यह टेस्ट आती है कि बाबा कितना मीठा, कितना प्यारा है! हमको कितना मीठा बनाते हैं! यह भी तुम जानते हो-हम भी कितने मीठे, कितने प्यारे थे! फिर हम ही पूज्य से पुजारी बने तो खुद को पूजते रहे। हम सो लक्ष्मी-नारायण अथवा सूर्यवंशी थे। फिर हम सो चन्द्रवंशी बनें। अब फिर सूर्यवंशी बनते हैं अर्थात् फायदे में जाते हैं, इसलिए बाप को याद करना है और पढ़ना है। यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं। गाते भी हैं जनक को सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली। हमको भी जनक मिसल ज्ञान चाहिए। जनक तो तुम सब हो ना। घर के मालिक हो ना। कोई बड़ा धनवान है, कोई कम। जनक तो हो ना। गरीब भी अपने को घर का मालिक समझेगा। तो तुम हरेक अपने को जनक समझो। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है। गरीब निवाज बाप को कहते हैं क्योंकि सबसे गरीब भारतवासी ही बने हैं। अभी तो तुमको बिल्कुल बेगर बनना है। यह देह भी अपनी न समझो। एक कहानी है ना-कहा, लाठी भी न उठाओ। बाप कहते हैं मुख्य है देह अहंकार। उसको भूलो। एव बाप को याद करो। यह तुम सब जानते हो-मैं आत्मा हूँ, यह शरीर है। एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। पुनर्जन्म को सब मानते हैं। जरूर जिस युग में रहेंगे पुनर्जन्म भी वहाँ ही मिलेगा। चौरासी जन्म हैं ना। यह चक्र है। तुम बच्चों से ही आदि शुरू होती है। फिर नीचे आते हो। यह स्वदर्शन हुआ। तीसरा नेत्र भी तुमको मिला है। जितना-जितना बाप को याद करेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे। जीवनमुक्ति तो सभी को मिलती है। पहले तो मुक्ति में जाना है। तुम भी पहले मुक्ति में जाते हो फिर जीवनमुक्ति में आयेंगे। स्वर्ग में पहलेपहले देवी-देवता धर्म वाले आयेंगे, जो धर्म अभी प्राय: लोप हो गया है। अब बाप आशीर्वाद करते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, सदा शान्ति भव। चिरन्जीवी भव अर्थात् बहुत जन्म जिओ। आशीर्वाद तो बाप से मिलती है। परन्तु फिर हर एक को अपना पुरूषार्थ करना है कि हम चिरन्जीवी कैसे बनें। बाप को याद करने से ही तुम चिरन्जीवी बन रहे हो। यह आशीर्वाद बाप करते हैं। ब्राह्मण लोग भी कहते हैं आयुषवान भव। बाप भी कहते हैं-सदा जीते रहो बच्चे। तुम भी समझते हो हम चिरन्जीवी बन रहे हैं। आधाकल्प के लिए कभी काल नहीं खायेगा। सतयुग में मरने का नाम नहीं होता। यहाँ तो मनुष्य मरने से डरते हैं ना। तुम तो पुरूषार्थ कर रहे हो मरने लिए। शरीर छोड़ हम अपने बाप पास जायेंगे, स्वर्गवासी बनने। निर्वाणधाम जाने लिए सिर्फ पुरूषार्थ करते हो, सन्यासी नहीं कर सकते। वह न खुद मुक्ति पाते हैं, न किसको देते हैं। तुम जानते हो हम बाबा को याद करते-करते बस शरीर छोड़ देंगे। कोई कहते हैं-बाबा, हम जल्दी जावें। कब विनाश होगा? हम कब जायेंगे? तुम ऐसे मत कहो-हम कब जायेंगे! यह कहना माना बाबा आप वापिस कब जायेंगे! यह हिसाब हुआ। तुम शिवबाबा पास बैठे हो। तुम ईश्वरीय सन्तान हो। तुम्हारा ही यादगार बना हुआ है। मोस्ट बिलवेड बाप के बच्चे बने हो, तो तुमको भी बाप जैसा बहुत मीठा, बहुत प्यारा बनना है और सबको बनाना है। टाइम तो लगता है। कोई बहुत तीखी दौड़ी लगाते हैं, कोई कम। कल्प पहले मुआिफक कहेंगे इस समय तक फलाने इतनी दौड़ी पहन फूल बने हैं। इतनी कली बने हैं। कोई तो कली बन कली से फूल बन, फिर काँटे बन पड़ते हैं। माया का तूफान आया तो न कली, न फूल रहे। बड़े काँटे बन जाते हैं। बहुत अबलाओं पर अत्याचार होने लग पड़ते हैं। बाँध हो जाती हैं। बहुत नुकसान हो जाता है। वृन्दावन की बात है-अन्दर डान्स होता था..... है यह ज्ञान डान्स की बात। तुम बच्चे कहाँ-कहाँ से आते हो ज्ञान डान्स सीखने। तब बाबा कहते हैं बादल वह जो रिफ्रेश हो फिर ज्ञान डान्स करें। बाबा कहते हैं बाकी थोड़े रोज हैं। यह तो बड़ा अच्छा समय है। जितना भी टाइम हो उतना अच्छा। हमारी अवस्था पक्की होती जायेगी। बाप रत्न देते आये हैं ना। अभी तो अजुन बहुत कच्चे हैं। सबका जमा नहीं होता है। बहुत बड़ी राजधानी स्थापना होनी है। यह तुम ही जानते हो कि हम बाप को याद करने से राजधानी स्थापना करते हैं। बाप और खजाना याद रहता है। याद से ही हम अपना स्वराज्य स्थापना करते हैं। स्व आत्मा को अभी राजाई नहीं है। अब फिर हम सो राजाओं का राजा बनेंगे। यह नशा आत्मा को रहता है। आत्मा इन आरगन्स द्वारा वर्णन करती है। आत्माओं को ही यह सृष्टि चक्र का नॉलेज मिला है। बीज और झाड़ को जान गये हैं। बाप कहते हैं हम तुम कल्प पहले भी थे, अब हैं फिर कल्प बाद भी होंगे। सारे कल्प वृक्ष को जान लिया है। पहलेपहले बाप की पहचान देनी है। यह सब आत्माओं का निराकारी बाप है। पहले-पहले ब्राह्मणों को रचते हैं। शूद्र वर्ण को ब्राह्मण वर्ण बनाते हैं। यह है टॉप मोस्ट सिजरा। ब्राह्मण से देवता फिर क्षत्रिय, फिर इस्लामी, फिर बौद्धी आदि-आदि सब निकलते हैं। यह है ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर, जिस्मानी बाप ऊंच ते ऊंच ब्रह्मा। रूहानी बाप शिवबाबा। मूलवतन, सूक्ष्मवतन और स्थूलवतन। ब्रह्मा द्वारा यह ब्राह्मण पैदा हुए। फिर यह देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। नटशेल में सारा बुद्धि में है। शरीर निर्वाह भी करना है क्योंकि तुम कर्मयोगी हो। नौकरी आदि धन्धा करने लिए 8 घण्टा तुमको फ्रा है। वह तो करना ही है। गवर्मेन्ट की नौकरी 8 घण्टा होती है। गवर्मेन्ट का भी फिर चीफ जस्टिस होता है। परन्तु वह तो पूरी जजमेन्ट नहीं देते। यह पाण्डव गवर्मेन्ट भी है तो फिर धर्मराज भी है। बच्चों को समझाया जाता है अगर अच्छी रीति बाबा की सर्विस में नहीं रहे, देही-अभिमानी न बने और कोई उल्टा काम कर लिया तो उन पर दण्ड बहुत पड़ जाता है। यह हाईएस्ट गवर्मेन्ट भी है, हाईएस्ट सुप्रीम जज भी है। कोई गफलत की तो फिर ट्रिबुनल बैठेगी। खास तुम बच्चों के लिए। जो जैसा कर्म करते हैं वैसा उसको फल मिलता है। यह है रूहानी गवर्मेन्ट। रूह को सजा मिलती है। यहाँ तो स्थूल सजा मिलती है। वह फिर है गुप्त सजा, गर्भ में सजा भोगते हैं। फिर कहते हैं हमको बाहर निकालो। परन्तु जेल बर्ड तो आधा-कल्प बनना ही है। फिर आधा-कल्प तुम गर्भ महल में रहते हो। बाप कहते हैं तुम बच्चों की मैं कितनी सर्विस करता हूँ, इस पतित दुनिया, पतित शरीर में आकर। मुझे आना भी इसमें ही है, जिसका नाम ब्रह्मा रखा है। ब्रह्मा-सरस्वती ही श्री नारायण और श्री लक्ष्मी बनते हैं, ततत्वम् उनके बच्चे। तुम जानते हो हम माँ-बाप के तख्त पर जीत पहनने वाले हैं। एक दो का वारिस बनते जाते हैं। पहले वाले फिर नीचे आते जाते हैं। यहाँ फिर कहा जाता है माया पर जीत पहनो तो स्वर्ग के मालिक बनोगे। पतित मनुष्य स्वर्ग का मालिक बन न सकें। बाबा कहते हैं ड्रामा में कल्प-कल्प मेरा ही पार्ट है। तुम जानते हो अभी ड्रामा पूरा होता है। सतयुग की हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर से रिपीट होगी। फिर हम ही देवी-देवता बनेंगे। तुम इस चक्र को जानते हो। तुम्हारी तकदीर जगी हुई है। ज्ञान सूर्य तुम्हारी तकदीर जगा रहे हैं। तकदीर पर लकीर लगाता है-देह-अभिमान। मूल बात है देही-अभिमानी बनो। बाप को याद करो। अपने को आत्मा समझो। कितनी सहज बात है। तुम जानते हो 5 हजार वर्ष की यह बात है। मूल बात बाबा समझाते हैं-देही-अभिमानी बनते रहो। समझाना है भगवान तो एक है ना, जिसको भक्त याद करते हैं। भक्त ही भगवान होते तो फिर याद किसको करते। भक्त अथवा साधू साधना करते हैं भगवान की। कहते हैं ज्योति ज्योत समायेंगे। परन्तु निर्वाणधाम का मालिक तो चाहिए ना। ऐसे नहीं ब्रह्म ही भगवान है। भगवान कहते हैं-तुम्हारा यह भ्रम है। मैं तो ब्रह्म में रहने वाला स्टॉर हूँ। जैसे आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूंधा हुआ है, यह कभी विनाश नहीं हो सकता। ऐसे बाप कहते हैं मैं आत्मा भी इस ड्रामा के बन्धन में हूँ। यह फिर हूबहू रिपीट होगा। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान कर सच्चा व्यापारी बनना है। सच्चा धन्धा करना है।

2) देही-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। ज्ञान डान्स सीखनी और सिखानी है।

वरदानः करनकरावनहार की स्मृति से विघ्नों के बीज को समाप्त करने वाले समर्थ आत्मा भव l

सर्व प्रकार के विघ्नों का बीज दो शब्दों में हैं: 1-अभिमान और 2-अपमान। सेवा के क्षेत्र में या तो अभिमान आता कि मैंने यह किया, मैं ही कर सकता...या तो मेरे को आगे क्यों नहीं रखा गया, मेरे को यह क्यों कहा गया, यह मेरा अपमान किया गया। यही भावना भिन्न-भिन्न विघ्नों के रूप में आती है। जब खुदाई खिदमतगार हैं, करनकरावनहार बाप है तो अभिमान कहाँ से आया, अपमान कहाँ से हुआ? इसलिए कम्बाइन्ड रूप की स्मृति द्वारा समर्थ आत्मा बनो तो विघ्नों का बीज सदा के लिए समाप्त हो जायेगा।

स्लोगनः ज्ञान स्वरूप बनना है तो बाप और पढ़ाई से समान प्यार हो।

8 views

Related Posts

See All

Kommentare


bottom of page