top of page

आज की मुरली 1 Jan 2018 BK murli in Hindi (New Year)


Brahma Kumaris murli today Hindi New Year Madhuban Aaj ki murli 01-01-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - यहाँ तुम वनवाह में हो, अच्छा-अच्छा पहनना, खाना.. यह शौक तुम बच्चों में नहीं होना चाहिए, पढ़ाई और कैरेक्टर पर पूरा-पूरा ध्यान दो''

प्रश्नः-

ज्ञान रत्नों से सदा भरपूर रहने का साधन क्या है?

उत्तर:-

दान। जितना-जितना दूसरों को दान करेंगे उतना स्वयं भरपूर रहेंगे। सयाने वह जो सुनकर धारण करे और फिर दूसरों को दान करे। बुद्धि रूपी झोली में अगर छेद होगा तो बह जायेगा, धारणा नहीं होगी इसलिए कायदे अनुसार पढ़ाई पढ़नी है। 5विकारों से दूर रहना है। रूप-बसन्त बनना है।

ओम् शान्ति।

रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं। रूहानी बाप भी कर्मेन्द्रियों से बोलते हैं, रूहानी बच्चे भी कर्मेन्द्रियों से सुनते हैं। यह है नई बात। दुनिया में कोई मनुष्य ऐसे कह न सके। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझाते हैं। जैसे टीचर पढ़ाते हैं तो स्टूडेन्ट का रजिस्टर शो करता है। रजिस्टर से उनकी पढ़ाई और चलन का पता पड़ जाता है। मूल है ही पढ़ाई और कैरेक्टर, यह है ईश्वरीय पढ़ाई जो कोई पढ़ा न सके। रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त की, सृष्टि चक्र की नॉलेज है, यह कोई भी मनुष्य सारी दुनिया में नहीं जानते। ऋषि मुनि जो इतने पढ़े लिखे अथॉरिटी हैं, वह प्राचीन ऋषि मुनि खुद कहते थे कि हम रचता और रचना को नहीं जानते। बाप ने ही आकर पहचान दी है। गाया भी जाता है - यह है काँटों का जंगल। जंगल को आग ज़रूर लगती है। फूलों के बगीचे को कभी आग नहीं लगती क्योंकि जंगल सारा सूखा हुआ है। बगीचा हरा होता है। हरे बगीचे को आग नहीं लगती। सूखे को आग झट लग जाती है। यह है बेहद का जंगल, इनको भी आग लगी थी। बगीचा भी स्थापन हुआ था। तुम्हारा बगीचा अब गुप्त स्थापन हो रहा है। तुम जानते हो हम बगीचे के फूल खुशबूदार देवता बन रहे हैं, उसका नाम है ही स्वर्ग। अब स्वर्ग स्थापन हो रहा है। वन्डर है, तुम कितना भी लोगों को समझाते हो परन्तु किसकी बुद्धि में बैठता नहीं है, जो इस धर्म के नहीं होंगे उनकी बुद्धि में बैठेगा भी नहीं। एक कान से सुनेंगे दूसरे से निकाल देंगे। सतयुग त्रेता में भारतवासी कितने थोड़े होंगे। फिर द्वापर कलियुग में कितनी वृद्धि हो जाती है। वहाँ एक दो बच्चे यहाँ 4-5 बच्चे तो ज़रूर वृद्धि हो गई। भारतवासी ही अब हिन्दू कहलाते हैं। वास्तव में देवता धर्म के थे और कोई भी धर्म वाला अपने धर्म को नहीं भूलता। यह भारतवासी ही भूले हुए हैं। देखो इस समय कितने ढेर मनुष्य हैं। इतने सब तो ज्ञान आकर नहीं लेंगे। हर एक अपने जन्मों को भी समझ सकते हैं। जिसने पूरे 84 जन्म लिए होंगे, वह जरूर पुराने भक्त होंगे। तुम समझ सकते हो कि हमने कितनी भक्ति की है। थोड़ी की होगी तो ज्ञान भी थोड़ा ही उठायेंगे और थोड़ों को समझायेंगे। बहुत भक्ति की होगी तो ज्ञान भी बहुत उठायेंगे और बहुतों को समझायेंगे। ज्ञान नहीं उठाते तो समझा भी कम सकते, इसलिए उन्हें फल भी थोड़ा मिलता है। हिसाब है ना। बाप को एक बच्चे ने हिसाब निकाल भेजा तो इस्लामियों के इतने जन्म, बौद्धियों के इतने जन्म होने चाहिए। बुद्ध भी धर्म स्थापक है। उनके पहले कोई बुद्ध धर्म का था नहीं। बुद्ध की सोल ने प्रवेश किया। उसने बुद्ध धर्म स्थापन किया। फिर एक से वृद्धि होती है। वह भी एक प्रजापिता है। एक से कितनी वृद्धि होती है। तुमको तो राजा बनना है-नई दुनिया में। यहाँ तो वनवाह में हो। किसी चीज़ का शौक नहीं रहना चाहिए। हम अच्छे कपड़े आदि पहनें, यह भी देह-अभिमान है। जो मिला सो अच्छा। यह दुनिया ही थोड़ा समय है। यहाँ अच्छा कपड़ा पहना, वहाँ फिर कम हो जायेगा। यह शौक भी छोड़ना है। आगे चलकर तुम बच्चों को आपेही साक्षात्कार होते रहेंगे। तुम खुद कहेंगे यह तो बहुत सर्विस करते हैं, कमाल है। यह ज़रूर ऊंच नम्बर लेंगे। फिर आप समान बनाते रहेंगे। दिन प्रतिदिन बगीचा तो बड़ा होने का है। जितने देवी-देवता सतयुग के वा त्रेता के हैं, वह सब गुप्त यहाँ ही बैठे हैं फिर प्रत्यक्ष हो जायेंगे। अभी तुम गुप्त पद पा रहे हो। तुम जानते हो हम पढ़ रहे हैं - मृत्युलोक में, पद अमरलोक में पायेंगे। ऐसी पढ़ाई कभी देखी। यह वन्डर है। पढ़ना पुरानी दुनिया में, पद पाना नई दुनिया में। पढ़ाने वाला भी वही है जो अमरलोक की स्थापना और मृत्युलोक का विनाश कराने वाला है। तुम्हारा यह पुरूषोत्तम संगमयुग बहुत छोटा है, इनमें ही बाप आते हैं-पढ़ाने के लिए। आने से ही पढ़ाई शुरू हो जाती है। तब बाप कहते हैं लिखो - शिव जयन्ती सो गीता जयन्ती। इनको मनुष्य नहीं जानते। उन्होंने कृष्ण का नाम रख दिया है। अब यह भूल जब कोई समझे। कितने बड़े-बड़े आदमी म्यूज़ियम में आते हैं, ऐसे नहीं कि वह बाप को जानते हैं, कुछ नहीं इसलिए बाबा कहते हैं फार्म भराओ तो पता लगे कि कुछ सीखा है। बाकी यहाँ आकर क्या करेंगे। जैसे साधू सन्त महात्मा के पास जाते हैं, यहाँ वह बात नहीं। इनका तो वही साधारण रूप है। ड्रेस में भी कुछ फ़र्क नहीं इसलिए कोई समझ नहीं सकते हैं। समझते हैं यह तो जौहरी था। पहले था विनाशी रत्नों का जौहरी। अभी बने हैं अविनाशी रत्नों का जौहरी। तुम सौदा भी बेहद के बाप से करते हो। जो बड़ा सौदागर, जादूगर, रत्नागर है। तो हर एक अपने को समझे कि हम रूप बसन्त हैं। हमारे अन्दर ज्ञान रत्न लाखों रूपये के हैं। इन ज्ञान रत्नों से तुम पारसबुद्धि बन जाते हो। यह भी समझने की बात है। कोई अच्छे सयाने हैं जो इन बातों को धारण करते हैं। अगर धारणा नहीं होती तो कोई काम के नहीं। समझो उसकी झोली में छेद है, बह जाता है। बाप कहते हैं मैं तुमको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देता हूँ। अगर तुम दान देते रहेंगे तो भरतू रहेंगे। नहीं तो कुछ भी नहीं, खाली हैं। पढ़ते नहीं, कायदे अनुसार चलते नहीं। इसमें सबजेक्ट बड़ी अच्छी हैं। 5 विकारों से तुमको बिल्कुल दूर जाना है।बाप ने समझाया है यह जो राखी बन्धन मनाते हैं वह भी इस समय का है। परन्तु मनुष्य अर्थ नहीं जानते तो राखी क्यों बाँधी जाती है। वो तो अपवित्र होते रहते राखी बाँधते रहते। आगे ब्राह्मण लोग बाँधते थे। अब बहनें भाई को बाँधती हैं - खर्ची के लिए। वहाँ पवित्रता की बात नहीं। बड़ी फैशन वाली राखियाँ बनाते हैं। यह दीवाली दशहरा सब संगम के हैं। जो बाप ने एक्ट की है वह फिर भक्ति मार्ग में चलती है। बाप तुमको सच्ची गीता सुनाए यह लक्ष्मी-नारायण बनाते हैं। अभी तुम फर्स्ट ग्रेड में जाते हो। सत्य नारायण की कथा सुनकर तुम नर से नारायण बनते हो। अब तुम बच्चों को सारी दुनिया को जगाना है। कितनी योग की ताकत चाहिए। योग की ताकत से ही तुम कल्प-कल्प स्वर्ग की स्थापना करते हो। योगबल से होती है स्थापना, बाहुबल से होता है विनाश। अक्षर ही दो हैं - अल्फ और बे। योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो। तुम्हारा ज्ञान बिल्कुल ही गुप्त है। तुम जो सतोप्रधान थे, वह अब तमोप्रधान बने हो। फिर सतोप्रधान बनना है। हर एक चीज़ नई से पुरानी ज़रूर होती है। नई दुनिया में क्या नहीं होगा। पुरानी दुनिया में तो कुछ भी नहीं है। जैसे खोखा। कहाँ भारत स्वर्ग था, कहाँ भारत अब नर्क है। रात दिन का फ़र्क है। रावण का बुत बनाकर जलाते हैं, परन्तु अर्थ नहीं जानते। तुम अब समझते हो यह क्या-क्या कर रहे हैं। तुम्हारे में भी कल अज्ञान था, आज ज्ञान है। कल नर्क में थे, आज स्वर्ग में जा रहे हो - रीयल। ऐसे नहीं जैसे दुनिया वाले लोग कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। तुम अब स्वर्ग में जायेंगे तो फिर नर्क होगा ही नहीं। कितनी समझने की बात है। है भी सेकेण्ड की बात। बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। यह सबको बताते रहो। बोलो, तुम इन (लक्ष्मी-नारायण) जैसे थे फिर 84 जन्म लेकर यह बने हो। सतोप्रधान से तमोप्रधान बने हो फिर सतोप्रधान बनना है। आत्मा तो विनाश नहीं होती। बाकी उनको तमोप्रधान से सतोप्रधान फिर बनना ही पड़े। बाबा किसम-किसम से समझाते रहते हैं। मेरी बैटरी कभी पुरानी होती नहीं। बाबा सिर्फ कहते हैं अपने को बिन्दू आत्मा समझो। कहते हैं इनकी आत्मा निकल गई। तो आत्मा संस्कारों अनुसार एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। अब आत्माओं को घर जाना है। यह भी ड्रामा है। सृष्टि चक्र रिपीट होता ही रहता है। पिछाड़ी में हिसाब निकाल कहते हैं दुनिया में इतने मनुष्य हैं। ऐसे क्यों नहीं कहते इतनी आत्मायें हैं। बाप कहते हैं बच्चे मुझे कितना भूल गये हैं। फिर सबका मुझे ही कल्याण करना है, तब तो बाप को पुकारते हैं। तुम बाप को भूल जाते हो, बाप बच्चों को नहीं भूलते। बाप आते हैं पतितों को पावन बनाने। यह है गऊमुख। बाकी बैल आदि की बात नहीं। यह भाग्यशाली रथ है। बाबा तुम बच्चों को कहते हैं शिवबाबा हमको श्रृंगारते हैं। यह पक्का याद रहे। शिवबाबा को याद करने से बहुत फायदा है। बाबा हमें इनके द्वारा (ब्रह्मा द्वारा) पढ़ाते हैं, तो इनको नहीं याद करना है। सतगुरू एक शिवबाबा है, उस पर तुम्हें बलिहार जाना है। यह भी उन पर बलिहार गया ना। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। बच्चे जाते हैं सतयुगी फूलों की दुनिया में, फिर काँटों में मोह क्यों होना चाहिए। 63 जन्म तो भक्ति मार्ग के शास्त्र पढ़ते पूजा करते आये हो। तुमने पूजा भी पहले शिवबाबा की की है, तब तो सोमनाथ का मन्दिर बनाया है। मन्दिर तो सभी राजाओं के घर में थे, कितने हीरे जवाहर थे। पीछे आकर चढ़ाई की। एक मन्दिर से कितना सोना आदि ले गये। तुम ऐसे धनवान विश्व के मालिक बनते हो। यह धनवान थे, विश्व के मालिक थे परन्तु इनके राज्य को कितना समय हो गया है, कोई को पता नहीं है। बाप कहते हैं 5 हज़ार वर्ष हुए। 2500 वर्ष राज्य किया, बाकी 2500 वर्ष में इतने मठ पंथ आदि वृद्धि को पाते हैं।तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए कि हमको बेहद का बाप पढ़ाते हैं। अथाह मिलकियत मिलती है। दिखाते हैं सागर से देवता निकले रत्नों की थालियाँ भरकर आये। अब तुमको ज्ञान रत्नों की थालियाँ भर भरकर मिलती हैं। बाप तो ज्ञान का सागर है। कोई अच्छी रीति थाली भरते हैं, कोई की बह जाती है। जो अच्छी रीति पढ़ेंगे, पढ़ायेंगे वह ज़रूर अच्छा धनवान बनेंगे। राजधानी स्थापन हो रही है। यह ड्रामा में नूँध है। जो अच्छी रीति पढ़ते हैं उनको ही स्कालरशिप मिलती है। यह है ईश्वरीय स्कॉलरशिप, अविनाशी। वह है विनाशी। सीढ़ी बड़ी वन्डरफुल है। 84 जन्मों की कहानी है ना। बाप कहते हैं सीढ़ी की इतनी बड़ी ट्रांसलाइट बनाओ जो दूर से बिल्कुल साफ दिखाई दे। मनुष्य देखकर वन्डर खायेंगे। फिर तुम्हारा नाम भी बाला होता जायेगा। अभी जो फेरी पहनकर (पा लगाकर) जाते हैं वह पिछाड़ी में आयेंगे। दो चार बार फेरी पहनी, तकदीर में होगा तो जम जायेंगे। शमा तो एक ही है, कहाँ जायेंगे। बच्चों को बहुत मीठा बनना है। मीठा तब बनेंगे जब योग में रहेंगे। योग से ही कशिश होगी। जब तक कट (जंक) नहीं निकली होगी तो किसको कशिश भी नहीं होगी। यह सीढ़ी का राज़ सब आत्माओं को बताना है। धीरे-धीरे नम्बरवार सब जानते जायेंगे। यह है ड्रामा। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती रहती है। जिसने यह समझाया, उसको याद करना चाहिए ना। बाप को ओमनी प्रेजन्ट कहते हैं लेकिन वहाँ तो ओमनी प्रेजन्ट है माया, यहाँ है बाप क्योंकि सेकेण्ड में आ सकता है। तुमको समझना चाहिए कि बाबा इसमें बैठा ही है। करन-करावनहार है ना। करता भी है, कराता भी है, बच्चों को डायरेक्शन देते हैं। खुद भी करते रहते हैं। क्या कर सकते हैं, क्या नहीं कर सकते हैं - इस शरीर में, वह हिसाब करो। बाबा खाते नहीं वासना लेते हैं। अच्छा!मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।सूचनायह अव्यक्ति मास हम सभी ब्रह्मा वत्सों के लिए विशेष वरदानी मास है, इसमें हम अन्तर्मुखी बन साकार ब्रह्मा बाप के समान बनने का लक्ष्य रख तीव्र पुरुषार्थ करते हैं, इसके लिए इस जनवरी मास में रोज़ की मुरली के नीचे विशेष पुरुषार्थ की एक प्वाइंट लिख रहे हैं, कृपया सभी इसी अनुसार अटेन्शन रख पूरा दिन इस पर मनन चिंतन करते अव्यक्त वतन की सैर करेंब्रह्मा बाप समान बनने के लिए विशेष पुरुषार्थसमय प्रमाण तीन शब्द सदा याद रखो - अन्तर्मुख, अव्यक्त और अलौकिक, अभी तक कुछ लौकिकपन मिक्स है लेकिन जब बिल्कुल अलौकिक अन्तर्मुखी बन जायेंगे तो अव्यक्त फरिश्ते नज़र आयेंगे।

रूहानी वा अलौकिक स्थिति में रहने के लिए अन्तर्मुखी बनो।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) रूप-बसन्त बन अपनी बुद्धि रूपी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से सदा भरपूर रखनी है। बुद्धि रूपी झोली में कोई छेद न हो। ज्ञान रत्न धारण कर दूसरों को दान करना है।

2) स्कालरशिप लेने के लिए पढ़ाई अच्छी तरह पढ़नी है। पूरा वनवाह में रहना है। किसी भी प्रकार का शौक नहीं रखना है। खुशबूदार फूल बनकर दूसरों को बनाना है।

वरदान:- शुभचिंतक स्थिति द्वारा सर्व का सहयोग प्राप्त करने वाले सर्व के स्नेही भव

शुभचिंतक आत्माओं के प्रति हर एक के दिल में स्नेह उत्पन्न होता है और वह स्नेह ही सहयोगी बना देता है। जहाँ स्नेह होता है, वहाँ समय, सम्पत्ति, सहयोग सदा न्यौछावर करने के लिए तैयार हो जाते हैं। तो शुभचिंतक, स्नेही बनायेगा और स्नेह सब प्रकार के सहयोग में न्यौछावर बनायेगा इसलिए सदा शुभचिंतन से सम्पन्न रहो और शुभचिंतक बन सर्व को स्नेही, सहयोगी बनाओ।

स्लोगन:- इस समय दाता बनो तो आपके राज्य में जन्म-जन्म हर आत्मा भरपूर रहेगी।

13 views

Related Posts

See All
bottom of page