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वैराग्य का परिणाम

𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi

इस जग का कोई सुख, मेरे मन को ना भाए
मुझको तो बस मेरा, मूल वतन ही याद आए

खत्म हुआ भोजन और, वस्त्रों का आकर्षण
बाबा के प्रति बुद्धि से, हुआ पूरा ही समर्पण

इस जग का सुख, क्षण भर में मिट जाएगा
महाविनाश का पल, सब में वैराग्य जगाएगा

क्षणिक सुख के पीछे, पल पल होता बर्बाद
प्रभु याद में रहकर, अपना समय करें आबाद

महान वही जो अब ही, वैराग्य धारण कर ले
मिटने वाली दुनिया से, पहले खुद ही मर ले

सतयुगी संस्कारों की, स्मृतियां मन में जगाएं
कलियुगी संस्कार मन से, पूरे विस्मृत हो जाएं

हमें देखकर हर आत्मा, भूले अपना देहभान
हो जाए वो पूरी ही, पाँच विकारों से अनजान

पुराने जग से वैराग्य, नई दुनिया को लाएगा
अपना दैवी साम्राज्य, फिर से धरा पर आएगा ||

" ॐ शांति "

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