top of page

स्वदेश वापसी की यात्रा
𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi
रहता हूँ इस धरा पर, जैसे किसी परदेश में
ना मालूम कब जाऊंगा, मैं अपने स्वदेश में
पांच तत्व के तन का, पिंजरा तोड़ ना पाऊँ
समझ नहीं आता कैसे, मूल वतन मैं जाऊँ
किस कर्म बंधन का, बाकी बचा है हिसाब
क्यों नहीं आ रहा, अन्तर्मन से कोई जवाब
शिव परमात्मा ने मुझे, एक ही युक्ति बताई
खुद को आत्मा समझो, देखो आत्मा भाई
तन अपना विनाशी, इक दिन मिट जाएगा
पंच तत्वों से निर्मित, इनमें ही मिल जाएगा
अपना अनादि स्वरूप, स्मृति में तुम लाना
औरों को भी तुम सदा, आत्मा नजर आना
तन से न्यारेपन का, अभ्यास करोगे जितना
तन पिंजरे से निकलना, सहज होगा उतना
कर्म का हर बंधन भी, समाप्त होता जाएगा
परमपिता शिव हमें, खुद स्वदेश ले जाएगा ||
" ॐ शांति "
Suggested➜

Get Help through the QandA on our Forum
bottom of page