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प्राकृतिक आपदाओं पर कविता

𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi

अपनी मर्यादा में रहना है प्रकृति का विधान
ऐसी मर्यादायें हमें सिखाते ख़ुद शिव भगवान

अपने सुख के लिए प्रकृति को नहीं सताओ
प्रकृति के नियमानुसार जीवन को चलाओ

प्रकृति का नियम होता लक्ष्मण रेखा समान
उल्लंघन करके बन जाओगे दुखों के गुलाम

दोहन करके प्रकृति का किया उसे कंगाल
इसीलिए प्रकृति को क्रोध आया विकराल

फैलाई तबाही वर्षा जल को बाढ़ बनाकर
अपने साथ कितने जीवन ले गई बहाकर

पेड़ काट काटकर भौतिक साधन जुटाया
हरीभरी धरती को मानव ने बंजर बनाया

अति वृष्टि का जल उमड़ घुमड़कर आया
इसका तीव्र वेग कोई सहन कर न पाया

इस प्रकोप का दुख अब किसलिए मनाते
इस समस्या को किसलिए नहीं सुलझाते

धरती की बंजरता को जड़ से तुम मिटाओ
अपने चारों तरफ हरे भरे तुम पेड़ लगाओ

प्रकृति का वंदन करो करके उसका पालन
प्राकृतिक मर्यादा में करो जीवन का संचालन

इसी विधि से प्रकृति भी मर्यादित हो जाएगी
दुख देना छोड़कर सुखमय जीवन बनाएगी ||

" ॐ शांति "

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