
नारी शक्ति
𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi
बेबस व्यथित बेहाल होकर, नारी क्यों बिलखती
लज्जा गंवाकर नारी, क्यों मन ही मन सिसकती
बलिदानों की प्रतिमा नारी, क्यों हो गई कमजोर
भरा हुआ विष का प्याला, क्यों उसके चारों ओर
प्रसव पीड़ा को सहने वाली, क्या क्या वो सहेगी
उसकी झोली सदाकाल, क्या दुख से भरी रहेगी
नव दुर्गा का प्रतीक है नारी, शौर्य उसमें समाया
फिर क्यों नारी को हमने, इतना कमजोर बनाया
पद्मिनी, लक्ष्मी और सीता, गवाही आज भी देती
धर्म की रक्षा के लिए नारी, प्राण आहुत कर देती
वस्तु नहीं तू वासना की, कर खुद की तू पहचान
जीवन हो महाजीवन तेरा, समझाते तुझे भगवान
निष्प्राण हुई सृष्टि का, करना तुझको नव निर्माण
अपनी प्रतिभा का देना है, संसार को तुझे प्रमाण
हिमालय से भी ऊँचा, अपने मनोबल को बनाना
अपनी दिव्यता की किरणें, सारे विश्व में फैलाना
दैवीरूप धरकर सबको, तुम ज्ञानामृत ही पिलाना
भारत देश का खोया हुआ, फिर से मान दिलाना ||
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