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घर चलेंगे पावन बनकर

𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi

आने को है संसार में, अब स्वर्णिम युग की भोर
आओ हम सब मिलकर चलें, ज्ञानसूर्य की ओर

निर्बाध और निरन्तर वो, फैला रहा ज्ञान प्रकाश
बुझा रहा आत्माओं की, रूहानी सुख की प्यास

केवल संगमयुग में ही, सुख हमको यह मिलता
पवित्रता का पौधा केवल, इसी युग में खिलता

योगबल से हम सबके, हो जाते विकर्म विनाश
पवित्र बनकर हो जाते, हम शिवबाबा के खास

भविष्य प्रालब्ध का भवन, पवित्रता ही बनाती
सतयुग का श्रेष्ठ पद हमें, पवित्रता ही दिलाती

महत्व जानकर इसका, पवित्रता को हम पालें
अपने अन्दर से अवगुण, चुन चुनकर निकालें

आने वाली दुनिया की, अब करनी हमें तैयारी
पक्की करते जाएंगे, आत्मिक अवस्था हमारी

नहीं देखेंगे इधर उधर, हम पवित्र बनते जायेंगे
श्रीमत का श्रृंगार कर, हम रोज संवरते जाएंगे

समय नजदीक आया, अब अपने घर है चलना
इसीलिए अपने संस्कारों को पूरा हमें बदलना

अब चलना है घर अपने, छोड़कर सभी विकार
बाबा बैठे हैं हमारे लिए, पलकें बिछाकर तैयार ||

" ॐ शांति "

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