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अमृत वेला का अनुभव (10)
𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi
शैया त्यागकर हुआ स्वच्छ पास बाप के आया
अमृत बरसा और बरसता रहा मैं उसमें नहाया
शीतलता आई जीवन में मुख हर्षित होने लगा
मेरा देह अभिमान अब चिर निद्रा में सोने लगा
आत्मभान जगाकर मैं आया हूँ अपने तन में
आत्मिक दृष्टि सदा रखूंगा ठाना अपने मन में |
एक ईशारा मिलते ही इस तन कुटिया को छोड़ा
बन्धन मुक्त होकर बुद्धि को घर की तरफ मोड़ा
मिले हजारों मेरे जैसे जो बैठे थे बाप के सम्मुख
उनके संग मैंने भी बाप से पाया अतीन्द्रीय सुख
मिलन मनाया बाप से हमने होकर तन से न्यारे
हम सब एक साथ बापदादा से गये आज श्रृंगारे ||
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