top of page
old paper bg.jpg

अमृत वेला का अनुभव (9)

𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi

वतन में बैठे बाबा करने अपने बच्चों का श्रृंगार
मैं भी उड़ चला सजने संवरने बनकर निराकार

बाबा के नयनों से निकले दिव्य गुणों की फुहार
आकर इस फुहार के तले बदल गया मेरा संसार

सर्व विकार मिट गये पवित्र बन गये मेरे संस्कार
लौट आया अपने तन में बदलने को सारा संसार |

तन से निकला मैं छोड़कर ये सारा संसार
उड़कर गया वतन में बनकर मैं निराकार

मिले बापदादा मुझे नजरों से किया प्यार
पवित्रता की किरणों से किया मेरा श्रृंगार

कहा बाबा ने चमकाते रहो रोज ये श्रृंगार
जगाकर रखना सबके प्रति रूहानी प्यार ||

Suggested➜

golden waves in black bg.png

Get Help through the QandA on our Forum

bottom of page