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अपने घर जाएंगे
𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi
पीछे मुड़कर नही देखेंगे, कदम बढ़ाए हैं आगे की ओर
नहीं डरेंगे नहीं झुकेंगे, मचे कितना भी विघ्नों का शोर
पांच विकारों से आजादी पाने की, हमने कसम है खाई
छोड़ दिया रावण का संग, शिव की श्रीमत है अपनाई
छोड़े संसार के आकर्षण, शिव को अपनी दुनिया माना
तन का दरवाजा खोलकर हमें, बाबा के संग घर जाना
आओ करें बाबा संग तैयारी, हम अपने घर चलने की
घड़ी सुहानी आई अब तो अपने, हर संस्कार बदलने की
योग अग्नि में जलकर मिटा दें, जीवन से पांचों विकार
सम्पूर्ण पवित्रता के गहनों से, कर लें हम अपना श्रृंगार
सम्पूर्ण निर्विकारी बनकर, बाबा का दिल तख्त पाएंगे
धर्मराज की सजाओं से बचकर, अपने घर हम जाएंगे ||
" ॐ शांति "
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