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अमृत वेला का अनुभव (12)
𝐏𝐨𝐞𝐭: BK Mukesh Modi
मन की आंखों से प्रभु का दर्शन पाया
प्यार का सागर मेरे अंतर्मन में समाया
उसके सम्मुख मैंने अपना तन भुलाया
जैसा वो है बिंदु वैसा ही खुद को पाया
यही बिंदू रूप लिए अपने तन में आया
देवपुरुष के रूप में खुद को मैंने पाया |
शांत समय अमृत वेला का नहीं है कोई शोर
उड़ चला तन को छोड़ अपने वतन की ओर
मिलन मनाया परमपिता से सर्व शक्तियां पाई
अपनी आत्मिक अवस्था मैंने मजबूत बनाई
अष्ट शक्तियों का आवरण फैला मेरे चारों ओर
मन बुद्धि से मिट गया व्यर्थ संकल्पों का शोर
सतोगुणी आत्मा बनकर आया अपने तन में
गुणमूर्त बन कर्म करूँगा ठाना अपने मन में ||
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